जम्मू-कश्मीर के इतिहास में बड़े संकल्पों के सिद्धियों वाला साल, रेल मंडल और टनल, आज पूरा होगा एक और सपना

जम्मू-कश्मीर के इतिहास में बड़े संकल्पों के सिद्धियों वाला साल है। छह जनवरी को रेल मंडल का तोहफा मिला, फिर सोनमर्ग टनल और आज एक और ख्वाब पूरा होगा।
देश के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के इतिहास में 2025 बड़ी सिद्धियों और सौगातों वाला साल साबित हो रहा है। कटड़ा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब शुक्रवार को वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर कश्मीर के लिए रवाना करेंगे, तब दशकों से नियति के भरोसे रहकर आतंक का दंश झेल रहे जम्मू-कश्मीर के लोगों का एक और ख्वाब पूरा होगा।
दरअसल, जम्मू में पहली ट्रेन दो दिसंबर 1972 में पहुंची थी और इस ट्रेन का नाम ही श्रीनगर एक्सप्रेस था। 1972 से 2025 तक के 52 वर्षों में ट्रेनों की संख्या 28 जोड़ी तक पहुंच गई, लेकिन जम्मू से कोई सीधी ट्रेन श्रीनगर नहीं पहुंची।
जम्मू में रेल डिविजन का सपना भी वर्षों पुराना था। यह सपना भी साल की शुरुआत में छह जनवरी को हुआ। प्रधानमंत्री ने जम्मू रेल मंडल का वर्चुअल उद्घाटन किया। उन्होंने उसी वक्त कहा था कि जम्मू-कश्मीर रेल आधारभूत संरचना में नए रिकॉर्ड बना रहा है और इससे इस क्षेत्र की आर्थिक प्रगति और समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
यह भी सुखद है कि कश्मीर तक ट्रेन के लिए हरी झंडी दिखाने के महज पांच दिन पहले यानी एक जून को जम्मू रेल डिविजन को आधिकारिक दर्जा मिल गया और कामकाज भी शुरू हो गया। दरअसल, दरबार मूव बंद होने के बाद जम्मू के लोगों के मन में पैदा हुई आशंकाओं का भी यह एक जवाब था। जम्मू की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में इससे मदद मिलेगी।
गर्व और समृद्धि से भरी दूसरी सौगात थी सोनमर्ग टनल
पीएम ने जम्मू-कश्मीर को दूसरी सौगात 13 जनवरी को दी थी। 2700 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से बनी 6.4 किमी लंबी सोनमर्ग सुरंग को केंद्र शासित प्रदेश की जनता को समर्पित किया था। इस टनल के जरिये श्रीनगर और सोनमर्ग के बीच पूरे साल बाधारहित आवागमन संभव हुआ है।
यह खूबसूरत टनल उन प्रवासी श्रमिकों के हौसले और बलिदान की नींव पर तैयार हुई है, जिन्होंने आतंकी हमले भी झेले हैं। जम्मू-कश्मीर को इस साल मिली ये तीनों सौगातें प्रतीक हैं इस बात की कि अब यह प्रदेश रेल नेटवर्क के जरिये देश के अन्य भागों से जुड़कर अलग-थलग नहीं रहेगा। खास बात यह भी कि इन तीनों बड़े प्रोजेक्ट ने पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में आकार लिया।
हाइब्रिड फाउंडेशन
गगनचुंबी इमारतों में हाइब्रिड फाउंडेशन का इस्तेमाल करते हैं। बुर्ज खलीफा शंघाई और क्लाॅक टावर इसी पर बना है। सुपरनोवा बिल्डिंग को भी इसी तकनीक पर बनाया गया है। इसी तर्ज पर वेल व पाइल फाउंडेशन का इस्तेमाल यूएसबीआरएल प्रोजेक्ट में हुआ है।
हवा के दबाव और ऊंचाई पर बनी इमारत के भार को सहने की क्षमता हाइब्रिड फाउंडेशन में होती है। यह नींव उन स्थानों पर उपयोगी है जहां मिट्टी कमजोर, ढीली या रेतीली होती है, और भूजल का स्तर अधिक होता है। इससे पूरे ढांचे के भार को नींव बड़े क्षेत्र में स्थानांतरित करने में सक्षम होती है, जिससे स्थिरता मिलती है।