जनेऊ ने साबित किया की राहुल गांधी हैं हिन्दू, जानिए जनेऊ पहनना क्यों होता है जरूरी

सोमनाथ मंदिर में गए राहुल गांधी के एक हस्ताक्षर को लेकर देश भर में हल्ला मच गया। कांग्रेस को इस मामले में सफाई के लिए उतरना पड़ा और देश को याद दिलाना पड़ा की राहुल गांधी न सिर्फ हिन्दू है। बल्कि वो जनेऊ धारी हिन्दू है। यानी हिन्दू धर्म को विशेष रूप से मानने वाले। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस जनेऊ का कांग्रेस ने जिक्र किया है। उस जनेऊ को हिन्दू क्यों पहनते हैं, और हिन्दू धर्म में उसका क्या महत्व है।

जनेऊ ने साबित किया की राहुल गांधी हैं हिन्दू, जानिए जनेऊ पहनना क्यों होता है जरूरीहिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार 24 संस्कार होते हैं। जिसमें से एक ‘उपनयन संस्कार’ भी है। जिसके तहत जनेऊ पहनी जाती है जिसे ‘यज्ञोपवीत संस्कार’ भी कहा जाता है। सिर का मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार का अहम अंग है। युगों चली आ रही इस परंपरा में शिष्यों को गुरुओं से शिक्षा लेने के दौरान ही जनेऊ होता था। जिसके बिना गुरू की दीक्षा पूरी नहीं होती। जनेऊ धारण करने के बाद शिष्यों को उसका पालन भी करना होता है।

पुराणों और हिन्दू धर्म के शास्त्रों में जनेऊ को व्रतबन्ध भी कहते हैं। कहा जाता है कि व्रतों से बंधे बिना मनुष्य का उत्थान सम्भव नहीं है। ऐसे में जनेऊ धारण करना आपके अंदर व्रती होने का गुण माना जाता है। हिन्दू धर्म में कहा गया है की जनेऊ धारण करने के बाद उसका पालन करना मनुष्य का धर्म है। साथ ही ब्राम्हणों को पूजा पाठ और धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए जनेऊ धारण करना अनिवार्य है।

बीते कुछ सालों में जनेऊ को हिन्दू धर्म से जोड़ दिया गया। लेकिन जनेऊ यानी उपनयन संस्कार सभी धर्मों में मिलता है। यह दीक्षा देने और धर्म, शास्त्र और बुद्धि में परांगत होने के बाद जनेऊ धारण कराने की परंपरा प्राचीनकाल से रही है। गुरु शिष्य की शिक्षा और दीक्षा पूरी होने के बाद उसे जनेऊ धारण कराते थे। हालांकि समय बीतने के बाद दूसरे धर्मों में दीक्षा को अपने धर्म में धर्मांतरित करने के लिए प्रयोग किया जाने लगा। यूं तो जनेऊ आर्य संस्कार है जो सभी धर्मों में किसी न किसी कारणवश अलग-अलग रूप में जाना जाता है। मक्का में काबा की परिक्रमा से पहले जनेऊ जैसा ही संस्कार किया जाता है। बौद्ध धर्म में भी उपनयन संस्कार का सार मिलता है। सारनाथ की सदियों पुरानी बुद्ध की प्रतिमा का बारीकी से निरीक्षण करने से उनकी छाती पर जनेऊ की पतली रेखा दिखाई देती है। जैन धर्म में भी इस संस्कार को किया जाता है। वित्र मेखला अधोवसन लुंगी का सम्बन्ध पारसियों से भी है। सिख धर्म में इसे अमृत संचार कहते हैं। बौद्ध धर्म से इस परंपरा को ईसाई धर्म ने अपनाया जिसे वे बपस्तिमा कहते हैं। यहूदी और इस्लाम धर्म में खतना करके दीक्षा दी जाती है।

सुबह उठकर दिनचर्या निपटाने के दौरान जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसें, जिनका सीधा संबंध पेट की आंतों से होता है, कान की नसें दबने से आंतों पर असर होता है। दबाव डालने पर ये उसको पूरा खोल देती है, जिससे पेट  आसानी से साफ हो जाता है। कान के पास ही एक नस के दबने से मल-मूत्र त्यागने के समय शरीर में मौजूद कुछ पदार्थ भी बाहर निकलने लगते हैं। जिसको जनेऊ रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, पेट से संबंधित रोग, ब्लडप्रेशर, हृदय के रोगों के अलावा अन्य संक्रामक रोग नहीं होते।

 

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