ग्लोबल रैंप पर कोल्हापुरी चप्पल का जलवा!

फ्रांस में रैंप पर कोल्हापुरी चप्पलें देखकर लक्जरी फैशन कंपनी प्राडा को अपनी गलती माननी पड़ी। अल्फांसो आम के मौसम में फ्रांस से आईं कुछ तस्वीरों ने भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों (Intellectual Property Rights) के लिए एक बड़ी बहस छेड़ दी है। यह घटना वैश्विक फैशन में भारत की समृद्ध विरासत और उसके अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गई है।

इंटरनेट मीडिया को लेकर भले ही हम नाक-भौं सिकोड़ें, मगर बीते माह जैसे ही इंटरनेट मीडिया का गलियारा फ्रांस में आयोजित हुए मिलान फैशन वीक के मेंस स्प्रिंग/समर कलेक्शन 2026 की तस्वीरों से गुलजार हुआ, देश में हल्ला मच गया। यहां चर्चा का विषय फैशन में कुछ रचनात्मक करने से जुड़ा बिल्कुल नहीं था, बात थी रैंप पर चल रहे माडल के पैरों में।

प्रसिद्ध लक्जरी फैशन ब्रांड प्राडा ने अपने नए संग्रह में ‘टो-रिंग सैंडल्स’ नाम से ऐसी चप्पलें पेश कीं, जो हूबहू कोल्हापुरी चप्पल से मिलती-जुलती थीं, लेकिन प्राडा ने अपनी ब्रांडिंग के तहत इनकी कीमत कई गुणा अधिक रखी और इनके भारतीय मूल का कोई उल्लेख तक नहीं किया। बस फिर क्या.. इस पर इंटरनेट मीडिया पर सवाल उठे, आलोचना हुई और मामला बौद्धिक संपदा उल्लंघन के आरोपों और नैतिक सहयोग के आह्वान में बदल गया।

बात अधिकारों की है
कोल्हापुरी-प्राडा विवाद ने वैश्विक स्तर पर पारंपरिक ज्ञान और शिल्प में बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। यह सांस्कृतिक विरासत की रक्षा का विवाद है, साथ ही इसकी वैश्विक अपील का लाभ उन समुदायों तक पहुंचने की संभावना है, जिन्होंने पीढ़ियों से इन परंपराओं को सावधानीपूर्वक संरक्षित और परिपूर्ण किया है। यह विवाद सिर्फ एक फैशन ब्रांड और पारंपरिक उत्पाद के बीच का नहीं है, बल्कि बौद्धिक संपदा अधिकारों, सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और भारतीय न्यायपालिका की बढ़ती ताकत का महत्वपूर्ण उदाहरण बनकर उभरा है। इस पूरे प्रकरण ने यह साबित कर दिया कि भारतीय उपभोक्ता अदालतें बौद्धिक संपदा के हनन के मामलों को कितनी गंभीरता से ले रही हैं और कैसे उन्होंने प्राडा जैसी एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी को भी अपना फैसला मानने पर मजबूर कर दिया। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी भारतीय कानूनों और उपभोक्ता अधिकारों से ऊपर नहीं हैं।

मामला लीगल है
अंततः प्राडा ने भविष्य में ऐसे विवादों से बचने के लिए अधिक संवेदनशीलता बरतने का आश्वासन दिया। बढ़ते दबाव के जवाब में प्राडा ने बयान जारी कर स्वीकार किया कि उसकी चप्पलों की डिजाइन पारंपरिक भारतीय दस्तकारी वाली कोल्हापुरी से प्रेरित हैं। यह भी कहा कि उनके इस संग्रह को फिलहाल व्यावसायिक तौर पर उपयोग नहीं किया जा रहा है और वे जल्द ही मुंबई आकर स्थानीय कोल्हापुरी चप्पल निर्माताओं से मिलेंगे और इस पर साथ काम करने पर चर्चा करेंगे। मगर अब यह विवाद मुंबई उच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है, जहां कोल्हापुरी कारीगरों के लिए मुआवजे और सार्वजनिक माफी की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर की गई है। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम ने न केवल भारतीय कारीगरों और उपभोक्ताओं को सशक्त किया है, बल्कि विश्व स्तर पर यह संदेश भी दिया है कि बौद्धिक संपदा का हनन बर्दाश्त नहीं होगा, खासकर जब यह राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा हो।

चर्चा में आईं चप्पलें
कानूनी और नैतिक बहसों के बीच, यह विवाद कोल्हापुरी चप्पलों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरा है। इसने इस पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प की ओर दुनियाभर का ध्यान आकर्षित किया है। स्थानीय कारीगर और विक्रेता इसकी बिक्री और लोगों की रुचि में वृद्धि देख रहे हैं। कृति सैनन, करीना कपूर खान और नीना गुप्ता ने बीते दिनों अपने इंटरनेट मीडिया हैंडल पर कोल्हापुरी चप्पलों की तस्वीर व वीडियो पोस्ट किए तो वहीं इससे पहले आमिर खान अपनी बेटी की शादी में भी कोल्हापुरी चप्पल कैरी करते दिखे थे। रणवीर सिंह, आदित्य राय कपूर से लेकर सैफ अली खान, श्रद्धा कपूर, विराट कोहली समेत कई सेलेब्स अक्सर कोल्हापुरी चप्पलों के साथ नजर आ जाते हैं।

रैंप पर सजा सांप-सीढ़ी का खेल
एक तरफ जहां भारतीय कला की चोरी को लेकर प्राडा विवाद में फंस गई, तो वहीं दूसरी तरफ लोकप्रिय संगीतकार फैरेल विलियम्स ने पेरिस में फैशन ब्रांड लुई वीटान के शो को भारतीय रंगों और परंपराओं से भर दिया। इस संग्रह में भारतीय संस्कृति से प्रेरित तत्वों को शामिल किया गया था, जिसमें भारतीय शिल्प कौशल और रचनात्मक प्रतिभा को भर-भरकर सराहा गया। शो में भारतीय रंगों, कपड़ों और डिजाइनों का उपयोग किया गया, जिसमें हल्दी, दालचीनी और ‘काफी इंडिगो’ रंग डेनिम ड्रेस में शामिल थे। शो की न सिर्फ थीम भारतीय खेल सांप और सीढ़ी थी, बल्कि इस शो के बैकग्रांउड गीत के लिए खास तौर पर पंजाबी गीत बजाया गया, जिसे तैयार किया आस्कर और ग्रैमी विजेता संगीतकार ए.आर. रहमान ने। साथ ही इस शो में वैश्विक ब्रांड एंबैसडर के तौर पर चार चांद लगाती नजर आईं दीपिका पादुकोण।

ये हमारी शान हैं
कोल्हापुरी चप्पलें सिर्फ फुटवियर नहीं हैं, वे महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों की सदियों पुरानी कारीगरी, सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक आधार का प्रतीक हैं। इन्हें बनाने की प्रक्रिया बेहद जटिल और पारंपरिक होती है, जिसमें कारीगरों की पीढ़ियों का अनुभव और कौशल शामिल होता है। कोल्हापुर फुटवेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष शिवाजी राव पोवार बताते हैं कि यह उद्योग करीब 500 साल पुराना है, लेकिन कोल्हापुर के अनेक उद्योग-व्यवसायों की भांति इस कुटीर उद्योग को भी संरक्षण एवं प्रोत्साहन करीब 150 साल पहले छत्रपति शाहूजी महाराज ने दिया। वह स्वयं कोल्हापुर में ही बनी चप्पलें पहनते थे। चमड़े को बबूल की छाल, हरण और गायपात जैसी अनेक वनस्पतियों के साथ उबालने से चमड़ा तैयार करने की प्रक्रिया शुरू होती है। पूरी तरह हस्तनिर्मित चप्पलों की सिलाई भी चमड़े के धागे से ही होती है। कोल्हापुर फुटवियर एसोसिएशन के ही सदस्य राजन सातपुते बताते हैं कि करीब 200 करोड़ रुपये के इस उद्योग से कोल्हापुर जिले के करीब 5,000 कारीगर जुड़े हैं।

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