गांधी की 150वीं जयंती पर विशेषः बापू की प्रेरणा से बनारस में ही रखी गई थी गांधी आश्रम की नींव

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ही पहल पर बनारस में सबसे पहले गांधी आश्रम की नींव रखी गई। यह काम किया आचार्य कृपलानी ने। बात उन दिनों की है जब राष्ट्रपिता गांधी अपने छठवें दौरे पर काशी आए थे। इसी दौरे में उन्होंने काशी विद्यापीठ की आधारशिला रखी। नौ फरवरी 1921 का वह दिन जब गांधी जी ने टाउनहॉल मैदान में काशीवासियों को असहयोग का मर्म समझाया। फिर 10 फरवरी को वेद मंत्रों और कुरान की आयतों के सस्वर पाठ के बीच काशी विद्यापीठ की नींव रखी गई।
उधर गांधी जी के पांचवें दौरे के दौरान काशी हिंदू विश्वविद्यालय छोड़ने वाला आचार्य कृपलानी ने विद्यापीठ में आचार्यत्व का कार्य शुरू कर दिया था। गांधी जी जब छठवें दौरे पर काशी आए तो आचार्य कृपलानी ने उनसे पूछा कि अब आगे क्या करना है? जवाब में गांधी जी ने कहा, कहीं बैठ जाओ और चरखे का काम संगठित रूप से शुरू करो। गांधी जी की प्रेरणा से आचार्य जी ने काशी से चरखे के संगठनात्मक आंदोलन की शुरूआत करते हुए देश की पहली खादी संस्था, ”श्री गांधी आश्रम” की नींव रखी।
चरखे का यह आंदोलन विदेशी वस्त्र बहिष्कार का वैकल्पिक रचनात्मक कार्यक्रम ही नहीं था, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आर्थिक हिंतों पर चोट करने वाली आंदोलनात्मक सीधी कार्रवाई का ऐसा अस्त्र बना जिससे ब्रिटिश साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद की नींव ही उचट गई। चरखे एवं करघे की आदिम तकनीक के स्वावलंबी हथियार से बने मोटे वस्त्र को धारण करने में गांधी जी ने वह ग्लैमर भर दिया कि उसे पहन कर भारत का साधारण आदमी भी रेशमी एवं जवाहरात जड़े वस्त्र को पहनने वालों को अपने आगे तुच्छ समझने लगा। बता दें कि गांधी जी के पांचवें काशी दौरे के वक्त ही आचार्य कृपलानी ने 50 छात्रों के साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय छोड़ा था। इसका उल्लेख, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं गांधी जीवन दर्शन में मिलता है।





