गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज होने से बच्चे को होते हैं ये नुकसान

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में कई तरह के बदलाव होते हैं. कई बार कुछ महिलाओं में ब्लड शुगर लेवल काफी बढ़ जाता है, इस स्थिति को गर्भकालीन डायबिटीज यानी या गेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है. हालांकि यह बीमारी गर्भवती महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद खत्म हो जाती है. लेकिन इससे गर्भावस्था में कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. इसलिए जरूरी है कि इस समय मां के सात बच्चे का भी खास ख्याल रखा जाए.

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज होने से बच्चे को होते हैं ये नुकसानहेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार, ऐसी महिलाएं जिन्हें पहले कभी डायबिटीज ना हुआ हो, लेकिन गर्भावस्था में उनका ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाए, तो यह गर्भकालीन डायबिटीज की श्रेणी में आता है. सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन द्वारा 2014 में किए गए एक अनुसंधान के मुताबिक, वजनी महिलाओं या फिर पूर्व में जिन महिलाओं को गर्भावस्था में गर्भकालीन डायबिटीज हो चुका हो या फिर उनके परिवार में किसी को डायबिटीज हो, ऐसी महिलाओं को इस रोग का जोखिम अधिक होता है. अगर इसका सही से इलाज न किया जाए या शुगर का स्तर काबू में ना रखा जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को खतरा रहता है.

दरअसल, गर्भकालीन डायबिटीज के दौरान पैन्क्रियाज ज्यादा इंसुलिन पैदा करने लगता है, लेकिन इंसुलिन ब्लड शुगर के स्तर को नीचे नहीं ला पाता है. हालांकि इंसुलिन प्लेसेंटा (गर्भनाल) से होकर नहीं गुजरता, जबकि ग्लूकोज व अन्य पोषक तत्व गुजर जाते हैं. ऐसे में गर्भ में पल रहे बच्चे का भी ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है. क्योंकि बच्चे को जरूरत से ज्यादा ऊर्जा मिलने लगती है, जो फैट के रूप में जमा हो जाता है. इससे बच्चे का वजन बढ़ने लगता है और समय से पहले ही बच्चे के जन्म का खतरा बढ़ जाता है.

ये तो सभी जानते है कि गर्भ में पल रहे बच्चे को मां से ही सभी जरूरी पोषण मिलते हैं. ऐसे में अगर मां का शुगर लेवल ज्यादा होगा तो इसका असर उसके अंदर पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है. इतना ही नहीं, बल्कि इससे गर्भ में पल रहे बच्चे को पीलिया (जॉन्डिस) हो सकता है, साथ ही कुछ समय के लिए सांस की तकलीफ भी हो सकती है. विशेष तौर पर ऐसी परिस्थति में इस बात की भी आशंका रहती है कि बच्चा बड़ा होने पर भी मोटापे से ग्रस्त रहे और उसे भी डायबिटीज हो जाए.

ऐसे बचें:

गर्भकालीन डायबिटीज से बचने के लिए सही तरह का खानपान, सक्रिय जीवनशैली, चिकित्सीय देखभाल, ब्लड शुगर स्तर की कड़ी निगरानी जरूरी है. इन सब सावधानियों के साथ स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया जा सकता है.

अगर कोई महिला इस रोग से ग्रस्त हो जाती है तो ऐसे में उसे अपने भोजन पर संयम व संतुलन रखना चाहिए. इसके अलावा डायटिशियन व पोषण विशेषज्ञ की सलाह पर एक डायट प्लान बना लेना चाहिए. साथ ही कार्बोहाइड्रेट का कम सेवन और कोल्ड ड्रिंक, पेस्ट्री, मिठाइयां जैसी अधिक मीठे पदार्थो से दूरी बनाएं साथ ही एक्सरसाइज भी जरूरी है.

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