फिल्मी पर्दे की तरह सियासत में भी कई किरदार ऐसे होते हैं जो अपनी छवि, शैली और लोगों के बीच अपनी पकड़ से वो सभी के दिलों पर राज करते हैं। सियासी गिलयारे में कई किस्से तो ऐसे भी बन जाते हैं जब एक व्यक्ति ही पार्टी की पहचान बन जाता है। उसी के दम पर जीत के दांव लगाए जाते हैं। सैफई के अखाड़े में पहलवानों को मात देने वाले समाजवादी पार्टी के पुरोधा मुलायम सिंह ने पहलवानी के साथ ही सियासत में कदम रखा। 60 के दशक में सियासी अध्याय का पहला पन्ना लिखा गया।
आज फादर्स डे के अवसर पर हम आपको मुलायम के जीवन के कई रोचक और अनसुने किस्सों के बारे में परिचित कराएंगे। मुलायम सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में 22 नवम्बर, 1939 को हुआ था। इनके पिता का नाम सुघर सिंह और माता का नाम मूर्ति देवी है। मुलायम सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (एम.ए) एवं जैन इन्टर कालेज करहल (मैनपुरी) से बी0 टी0 सी की शिक्षा हासिल की इसके बाद एक इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य शुरू किया।
मुलायम का पुत्र प्रेम किसी से छिपा नहीं है। नेताजी के नाम से बुलाए जाने वाले मुलायम अपने बेटे अखिलेश से कितना प्रेम करते हैं इसका बच्चा-बच्चा गवाह है। लेकिन मुलायम के बारे में एक बात कही जाती है कि पार्टी के हर कार्यकर्ता को अपने परिवार का सदस्य मानते हैं या यूं कहें कि वो अखिलेश की हमउम्र के नौवजवानों को अखिलेश की तरह ही तवज्जो देते हैं।
मुलायम सिंह यूपी की सियासत में एक ऐसा नाम है जिसने अपने बल-बूते जमीन से जुड़े रहने के साथ ही सियासी शिखर तक पहुंचे। मुलायम के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह कहते थे यह छोटे कद का बड़ा नेता है।
एक और सियासी किस्सा ये भी रहा कि मुलायम ने काल का पहिया घूमते ही चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत पर कब्जा कर लिया। ये सियासत का कोई पहला किस्सा नहीं था। इससे पहले भी सियासत में ऐसा होता रहा है।
अब बात करते हैं मुलायम और अखिलेश के पिता-पुत्र के रिश्ते की। नेताजी के नाम से पहचान बना चुके मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी को एक पहचान दी, जीत के परचम लहराए। इसके साथ ही उन्होंने अपने सिंहासन पर बेटे को बैठाया जिसमें भी मुलायम को सफलता हासिल हुई। लेकिन कहा जाता है कि मुलायम के इसी निर्णय से परिवार में मची अंतर्कलह ने विकारल रूप ले लिया।
यही अंतर्कलह समाजवादी पार्टी के लिए मुसीबत बनी है। सियासी पंडितों की माने तो इसी के चलते समाजवादी पार्टी को हार का भी सामना करना पड़ा। मुलायम के बारे में एक बात ये भी जाती है कि वो जनसभा के दौरान पचासों लोगों को संबोधन के दौरान उनके नाम से बुला सकते हैं।
मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में किस्सों की कमी नहीं है। मुलायम सिंह की जिंदगी में कुछ ऐसे पल भी आए जिनसे वो खुद और उनका कुनबा विवादों में रहे। मुलायम सिंह यादव की पहली शादी घरवालों ने 18 साल की उम्र में ही कर दी थी।
मुलायम उस वक्त दसवीं की पढ़ाई कर रहे थे। लोग बताते हैं कि उस वक्त गाड़ी-मोटर का इतना चलन नहीं था इसलिए मुलायम की बरात भैंसागाड़ी से गई थी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे एवं वर्तमान में राज्यपाल लालजी टंडन बताते हैं, ‘मुझे यह कहने में कोई दिक्कत नहीं है कि वे यारों के यार हैं। ऐसे यार, जो रिश्तों में कभी सियासत को नहीं आने देते और लाभ का मौका होने पर भी कभी घटिया सियासत नहीं करते। घटना मुझसे ही जुड़ी है।
मेरे जन्मदिन पर कुछ लोगों ने साड़ी वितरण का कार्यक्रम रखा था। भीड़ के कारण उसमें दुखद हादसा हो गया। मुलायम उस समय मुख्यमंत्री थे। मैं नेता प्रतिपक्ष। चुनाव भी नजदीक था।
तमाम लोगों ने इसे सियासी रंग देने की कोशिश की। मुलायम सिंह बाहर थे। सूचना मिलते ही वह लखनऊ आए और सीधे हमारे घर पहुंचे। ऐलान किया कि यह सिर्फ हादसा है, हादसे के अलावा और कुछ नहीं।