क्यों है वैष्णो देवी की इतनी मान्यता, भगवान राम ने दिया था ये वचन

जम्मू-कश्मीर की त्रिकूट पहाड़ियों पर मां वैष्णो का धाम स्थापित है इसलिए मां वैष्णो देवी को त्रिकुटा नाम से भी जाना जाता है। वैष्णो देवी मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक फैली है। कहा जाता है कि वैष्णो देवी के दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। चलिए जानते हैं कि आखिर वैष्णो देवी धाम की इतनी मान्यता क्यों है।

वैष्णो देवी धाम, हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में से एक है। यहां त्रिकूटा पर्वत पर एक दिव्य गुफा में तीन महाशक्तियां, महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती पिंडी रूप में विराजमान हैं। भक्तों में वैष्णो देवी धाम के प्रति अटूट आस्था है। आज हम आपको माता वैष्णो से जुड़ी एक पौराणिक कथा बताने जा रहे हैं, जो भगवान राम से भी जुड़ी हुआ है।

इसलिए है इतनी मान्यता
वैष्णो देवी का मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है। देवी के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं। वैष्णो देवी के पवित्र धाम की मान्यता है कि माता अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं और उन्हें सुख-समृद्धि का आशीष देती हैं। दुर्गा सप्तशती में भी वैष्णो देवी की कथा मिलती है।

क्या है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के अंश से एक कन्या का जन्म दक्षिण भारत में रत्नाकर परिवार में हुआ, जिनका उद्देश्य धर्म की रक्षा करना था। उनका नाम त्रिकूटा रखा गया। भगवान विष्णु का वंश होने के कारण बाद में उनका नाम वैष्णवी पड़ा था।

छोटी उम्र में जब त्रिकूटा को यह ज्ञात हुआ कि भगवान विष्णु का जन्म भगवान श्रीराम के रूप में हो चुका है, तो उन्होंने राम जी को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी। जब भगवान राम, माता सीता की खोज में निकले, तब रामेश्वरम तट पर उनकी भेंट त्रिकूटा से हुई। तब देवी त्रिकूटा ने राम जी के समक्ष यह इच्छा रखी कि वह उनसे विवाह करना चाहती हैं।

दिया था ये वचन
तब भगवान श्रीराम ने वैष्णो देवी से कहा कि उनका विवाह सीता जी से हो चुका और उन्होंने पत्नी व्रत लिया हुआ है। लेकिन साथ ही भगवान राम ने उन्हें यह वचन दिया कि मैं कलियुग के अंत में कल्कि अवतार लेकर आपसे मिलूंगा और विवाह करुंगा। कहा जाता है कि तभी से कल्कि अवतार की प्रतीक्षा में वैष्णो देवी त्रिकुटा पर्वत पर तपस्या कर रही हैं।

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