क्यों मनाई जाती है चित्रगुप्त पूजा

हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर चित्रगुप्त पूजा की जाती है। इस दिन को मुख्य रूप से कायस्थ समाज के लोगों द्वारा मनाया जाता है। वह इन्हें इष्ट देव एवं कुलदेवता के रूप में पूजते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि चित्रगुप्त पूजा का क्या महत्व है।

पांच दिवसीय दीपोत्सव में से एक भाई दूज के दिन चित्रगुप्त पूजा का भी विधान है। चित्रगुप्त जी को मृत्यु के देवता, यमराज जी के सहायक के रूप में जाना जाता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि चित्रगुप्त जी समस्त प्राणियों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। इस दिन पर कलम और दावात की भी पूजा की जाती है, इसलिए इस दिन को मस्याधार (कलम और दावात) पूजा भी कहते हैं।

इसलिए मनाई जाती है चित्रगुप्त पूजा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर ही चित्रगुप्त जी का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल इस तिथि पर भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति के रूप चित्रगुप्त पूजा की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा जी के चित्त से हुआ था। यमराज जी के सहायक होने के साथ-साथ भगवान चित्रगुप्त देवताओं के लेखपाल भी हैं।

इसके अलावा भी चित्रगुप्त पूजा किए जाने के कई कारण हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, यम देव ने अपनी बहन यमुना को यह वचन दिया था कि जो भी भाई, यम द्वितीया या भाई दूज पर अपनी बहन के यहां जाकर, बहन के हाथों माथे पर तिलक लगवाएगा और उसके यहां भोजन करेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताएगा। चूंकि भगवान चित्रगुप्त, यम देव के सहायक हैं, ऐसे में भाई दूज के दिन भगवान चित्रगुप्त की भी पूजा का विधान है।

चित्रगुप्त पूजा का महत्व

मान्यताओं के अनुसार, भगवान चित्रगुप्त कलम-दवात की सहायता से समस्त जीवों के कर्मों का विवरण लिखते हैं और उनके जीवन व मृत्यु की अवधि का हिसाब-किताब भी लिखते हैं। चित्रगुप्त पूजा के दिन कलम-दवात और बही-खातों की भी पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन पर चित्रगुप्त जी की पूजा से साधक को विद्या, बुद्धि, साहस और लेखन का आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही व्यापार में भी तरक्की के योग बनने लगते हैं और सभी तरह की रुकावट दूर होती हैं।

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