जानें क्यों इतिहास के पन्नों में गुम कर दिया गया ‘एका आंदोलन’, क्योंकि…

भारत को जिन-जिन आंदोलनों के कारण आजादी मिली, उनमें सामान्यतः वे ही आंदोलन याद रखे गए, जो शांतिपूर्वक किए गए थे। इसके उलटउन आंदोलनों को इतिहास की भूलभुलैया में छोड़ दिया गया, जिनमें हमारे देश के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। ऐसा ही एक आंदोलन था ‘एका आंदोलन’, जिसे आजादी के पहले और बाद भी प्रयत्नपूर्वक भुला दिया गया। जबकि इस आंदोलन ने अंग्रेजों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी।

किस्सा 1923 और उसके आसपास के दौर का है। उस दौर में अंग्रेज सरकार किसानों पर मनमाने कर लगाती और कर न चुकाने पर जमीन को अपने कब्जे में ले लेती। इससे किसान बहुत त्रस्त थे। तब किसानों को एक करने तथा इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए ‘एका आंदोलन’ शुरू हुआ। इस आंदोलन में क्रांतिकारी शिव वर्मा भी शामिल थे, जो गांवगांव जाकर भाषण देते और ग्रामीणों तथा किसानों को इस आंदोलन से जोड़ते।

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इस आंदोलन का ऐसा असर होने लगा कि अंग्रेजों की शह पर कर वसूलने वाले जमींदार और साहूकार बौखला गए। उन्होंने यह कुप्रचार शुरू कर दिया कि यह आंदोलन गांधीजी के खिलाफ है। उधर, कांग्रेस ने तो पहले ही इस ‘एका आंदोलन’ से दूरी बना रखी थी। इसी की आड़ में अंग्रेजों ने ‘एका आंदोलन’ का दमन शुरू कर दिया।

उनके पिट्‌ठुओं ने गांवों में जाकर किसानों की फसलों में आग लगाना शुरू कर दिया और किसानों को जेलों में बंद कर दिया। 1923 में कांग्रेस के प्रांतीय अधिवेशन में क्रांतिवीर शिव वर्मा ने ‘एका आंदोलन’ के समर्थन में प्रस्ताव लाने का प्रयास किया, लेकिन कांग्रेस ने जमीदारों के दबाव में उसे असफल कर दिया। फिर वर्मा ने कानपुर जाकर राष्ट्रभक्त संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी के सहयोग से ‘प्रताप’ समाचार पत्र में ‘एका आंदोलन’ के बारे में छपवाया। इन सब प्रयत्नों के बावजूद ‘एका आंदोलन’ को षड्‌यंत्रपूर्वक भुलाया गया।

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