क्या सच में ‘एक लड़का-लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते’?

एक लड़का और लड़की कभी सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते… ये लाइन आपने कई बार सुनी होगी- फिल्मों में वेब सीरीज में या फिर अपनी दादी-नानी की बातों में! मगर क्या वाकई ऐसा है (Can Boys And Girls Be Friends)? क्या जेंडर के आधार पर एक दोस्ती की बाउंड्री सेट होनी चाहिए या ये सिर्फ एक पुरानी सोच है जो बदलते समाज के साथ मेल नहीं खाती है? आइए जानें।
“अगर इतना क्लोज हो, तो शादी क्यों नहीं कर लेते?”… “इतने सालों से साथ हो, प्यार तो हो ही गया होगा ना?” अगर आप कभी किसी बॉय-बेस्टफ्रेंड या गर्ल-बेस्टफ्रेंड के बेहद करीब रहे हैं, तो ये सवाल आपने जरूर सुने होंगे।
समाज आज भी इस उलझन में है कि क्या वाकई Kya Ladka-Ladki Sirf Dost Ho Sakte Hain (Can Boys And Girls Be Friends)- बिना किसी रोमांटिक फीलिंग के? या फिर ये सिर्फ फिल्मों में दिखने वाली बात है, असल जिंदगी में असंभव?
दरअसल, इस सवाल पर बहस नई नहीं है, लेकिन 21वीं सदी की यंग जेनरेशन इस सोच को तोड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि ये सोच कितनी सही है और कितनी गलत। इसके साथ ही आपको बताएंगे कि आज के बदलते वक्त में लड़का-लड़की की दोस्ती को समाज किस नजर से देखता है।
कहां से आई यह सोच?
एक जमाना था जब लड़का और लड़की का रिश्ता कुछ ही दायरे में बांध दिया गया था- या तो खून का रिश्ता या फिर शादी का। जी हां, दोस्ती जैसे खुले और बराबरी वाले रिश्ते के लिए कोई जगह ही नहीं थी।
लड़का अगर लड़की से ज्यादा बात करने लगे, तो आस-पड़ोस वाले सवाल उठाने लगते थे। अगर कोई लड़की किसी लड़के के साथ ज्यादा समय बिताए, तो कैरेक्टर पर उंगलियां उठती थीं। इसी सोच के चलते धीरे-धीरे यह मान्यता बन गई कि “लड़का-लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते।”
कितना बदला है आज का समय?
आज का युग बदल चुका है। बच्चे स्कूल में एक साथ पढ़ते हैं, यंग जेनरेशन कॉलेज और ऑफिस में कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलती है। देखा जाए तो, सोशल मीडिया, को-वर्किंग स्पेसेज और खुले विचारों वाली परवरिश ने दोस्ती के मायनों को नया आयाम दिया है।
अब एक लड़का और लड़की साथ में घूम सकते हैं, मूवी देख सकते हैं, ट्रिप प्लान कर सकते हैं- और वो भी बिना किसी रोमांटिक एंगल के। जी हां, ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जहां सालों से लड़का-लड़की एक-दूसरे के बेस्टफ्रेंड हैं और सिर्फ एक स्ट्रॉन्ग फ्रेंडशिप शेयर करते हैं।
समस्या सोच में है, रिश्ते में नहीं
बता दें, असल समस्या दोस्ती में नहीं, बल्कि उस सोच में है जो हर रिश्ते को एक ही चश्मे से देखती है- कि अगर लड़का और लड़की करीब हैं, तो वो जरूर प्यार में होंगे।
इस मानसिकता का नुकसान सबसे ज्यादा उन्हीं दोस्तों को होता है, जो एक-दूसरे की जिंदगी का अहम हिस्सा हैं लेकिन उन्हें हर समय सफाई देनी पड़ती है कि “हम सिर्फ दोस्त हैं।”
दोस्ती और प्यार के बीच का फर्क समझना है जरूरी
प्यार में रोमांटिक अट्रैक्शन होता है, लेकिन दोस्ती में इमोशनल कनेक्शन का ज्यादा बड़ा रोल होता है।
दोस्ती में बाउंड्रीज होती हैं, रिस्पेक्ट होती है और सबसे बड़ी बात- सच्ची दोस्ती में कोई एक्सपेक्टेशन यानी अपेक्षा नहीं होती है।
एक लड़का अपनी गर्ल बेस्टफ्रेंड के रिश्ते में उसका मेंटर हो सकता है, गाइड हो सकता है या सिर्फ एक ऐसा इंसान जो बिना किसी एजेंडे के उसे समझता हो।
तो क्या ये रिश्ता प्यार से कम है? बिल्कुल नहीं, मगर यहां यह समझना जरूरी है कि इस प्यार में सेक्शुअल अट्रैक्शन की कोई जगह नहीं है।
क्यों जरूरी है इस सोच को बदलना?
अगर हम हर लड़का-लड़की की दोस्ती पर सवाल उठाते रहेंगे, तो असल रिश्ते खो देंगे, क्योंकि अगर हर दोस्ती में प्यार तलाशते रहेंगे, तो प्योर कनेक्शन का मतलब ही जिंदगी से बहुत पीछे चला जाएगा। लड़का-लड़की की दोस्ती, अगर समझदारी, सम्मान और विश्वास से बनी हो- तो वो किसी भी रिश्ते से ज्यादा खूबसूरत और मजबूत हो सकती है।