कोरोना से ठीक मरीज दोबारा अस्पताल में हो रहे हैं भर्ती, सामने आई ये चौका देने वाली रिपोर्ट…
55 साल के सुरनजीत चटर्जी कोरोना से ठीक होने के बाद जब अपने काम पर वापस लौटे तो उन्होंने महसूस किया कि उनके कुछ दूर चलने के बाद उनके दिल की धड़कन बढ़ने लगती है। उन्हें अपने दिल की जांच कराने के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। डॉक्टर सुरनजीत के परिवार के इतिहास में लोगों को दिल की बीमारी रही है लेकिन उनमें इसके कोई लक्षण नहीं थे, वे केवल शुगर और हाइपरटेंशन का शिकार थे। डॉक्टर चटर्जी जो अब कोरोना से ठीक हो चुके हैं उन्होंने अपने दिल की जांच कराई वो कहते हैं, “ईको ठीक था लेकिन हार्ट की कराई एमआरआई से पता चला कि मुझे मायोकार्डिटिस है। ( मांसपेशियों में सूजन)” डॉक्टर चटर्जी अब अपनी कोविड-19 ड्यूटी पर वापस चले गए हैं।
वे इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में आंतरिक चिकित्सा के एक वरिष्ठ सलाहकार हैं। इनका कहना है कि ये अकेले नहीं हैं उनके कई साथी हैं जो कोरोना से ठीक होकर लौटे हैं लेकिन अब उन्हें हार्ट, चेस्ट या सांस से जुड़ी शिकायते हैं। मेदांता अस्पताल के डॉक्टर यतीन मेहता कहते हैं, “कोरोना से ठीक होने के बाद कुछ मरीज़ों के हार्ट धीमें हो जात हैं, कुछ को हार्ट अटैक तो कुछ को स्ट्रोक भी हो जाता है। ये कोरोना से डैमेज हुई नसों के कारण होता है जो कोरोना के इलाज के दौरान थक्के जमा देती हैं। ”
कोविड 19 एंडोथेलियल कोशिकाओं पर हमला करता है जो हमारी नसों में होती हैं और जिससे खून के थक्के बनने लगते हैं। डॉक्टर चटर्जी कहते हैं, “देश में ये बीमारी अब पांच महीनों से है। अब हमें इसके बाद होने वाली चीज़ों को भी देखना चाहिए। कोविड 19 खत्म होने के बाद मरीज़ चार-छह सप्ताह बाद सुस्ती, शरीर में दर्द, खुजली जैसे लक्षणों के साथ वापस आते हैं। कुछ को तो दिल का दौरा और स्ट्रोक भी हो जाता है। कुछ मरीज़ों में एंग्ज़ायटी और अवसाद की चिंता भी देखने को मिली।” क्रिटिकल केयर की प्रोफेसर अंजन त्रिखा ने कहा, “अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से अस्पतालों में अलग-थलग रहने की वजह से थकान, सुस्ती, वजन कम होना और मनोरोग संबंधी समस्याएं सामने आई हैं।”
डॉक्टर चटर्जी का कहना है कि डॉक्टरों को न्यूरोलॉजिकल लक्षणों के बारे में देखना चाहिए इससे कमज़ोरी जैसी समस्याएं महसूस होती हैं और इटली,चीन, ऑस्ट्रिया से भी इससे जुड़ी रिपोर्ट्स सामने आई हैं। शहर भर के अस्पतालों में डॉक्टरों ने ऐसे मरीज़ों की सूचना दी है जो कोरोना वायरस से ऊबर चुके हैं लेकिन वापस आकर या तो कम ऑक्सीज़न मिलने कि शिकायत कर रहे हैं या दोबारो वायरस के संक्रमण कीं। 50 साल की उम्र के व्यक्ति को कोरोना से ठीक होने के बाद छुट्टी दे दी गई लेकिन एक दिन बाद वो शरीर में ऑक्सीज़न की कमी के साथ फिर अमरजेंसी वार्ड में भर्ती हो गया।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में आपातकालीन चिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉक्टर संदीप जैन ने कहा, “मरीज को लगभग 20 दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया था और उनके ठीक होने के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई थी और उनके सभी लक्षणों को ठीक कर दिया गया था। फिर भी छुट्टी देने के ठीक एक दिन बाद उन्हें सांस लेने में तकलीफ के साथ अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में वापस लाया गया और उनकी मौत हो गई। उनके लक्षण कोरोना से मिलते-जुलते थे तो हमने उनकी कोरोना जांच कराई लेकिन वो नेगेटिव ही आई।”
डॉक्टर संदीप लगभग 1से 2 प्रतिशत कोरोना से ठईक हुए मरीज़ों को वापस अस्पताल में आता हुआ देख रहे हैं। उनका कहना है कि मरीज़ फेफड़ों में शिकायत के साथ इमरजेंसी में आते हैं। साथ ही साथ दोबारा संक्रमण और निमोनिया की शिकायत लेकर भी आते हैं।वो बताते हैं कि ये शिकायतें उन रोगियों में ज़्यादा होती हैं जिनमें कोरोना के लक्षण काफी गंभीर होते हैं और उन्हें वेंटिलेटर की ज़रूरत होती है। सबसे ज़्यादा आम शिकायत जो डॉक्टरों ने मरीज़ों में देखी हैं वो है लंग्स फाइब्रोसिस, इसमें मरीज़ के फेफड़ों की क्षमता कम हो जाती है और इंजरी से ठीक होने के दौरान फेफड़ों के ऊतर कठोर हो जाते हैं।
सेकेंडरी इन्फेकशन
डॉक्टर उन मरीज़ों का भी इलाज कर रहे हैं जो दोबारा संक्रमण की शिकायत लेकर आ रहे हैं। डॉक्टर मेहता का कहना है, “कोविड -19 संक्रमण के गंभीर लक्षणों वाले रोगियों को स्टेरॉयड और कभी-कभी टोसीलिज़ुमैब जैसी दवाएं दी जाती हैं – ये दोनों ही प्रतिरक्षा प्रणाली को दबा सकते हैं जिससे दोबारा संक्रमण हो सकता है। कभी-कभी मरीज आईसीयू से बाहर आते हैं और फिर संक्रमण के कारण उनके हालात बिगड़ जाते हैं।”