कोरोना के चलते अब जल्द नहीं मिलेगी बड़े वेतन वाली नौकरियां, करना होगा…
भारतीय अर्थव्यवस्था लॉकडाउन में ढील के बाद धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। इससे नौकरियों के अवसर बढ़े हैं लेकिन अभी भी बड़े वेतन वाली नौकरियों (व्हाइट कॉलर जॉब) के लिए पेशवरों को इंतजार करना पड़ रहा है।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के पेरोल डाटा के अनुसार, अप्रैल से जून तिमाही के दौरान असंगठित क्षेत्रों में 08 लाख नई नौकरियां निकलीं जिसमें से पांच लाख सिर्फ जून महीने में आईं। यह उछाल एक्सपोर्ट हाउस, प्राइवेट गार्ड, इंफ्रा क्षेत्र से जुड़े छोटे ठेकेदार और छोटी कंपनियों में नई नियुक्तियां निकलने से हुईं। डाटा के अनुसार, ये सभी नौकरियां कम वेतन वाली थी। वहीं, अभी भी विनिर्माण क्षेत्र, वित्तीय प्रतिष्ठान और कोर इंजीनियरिंग क्षेत्र में बड़े वेतन की नौकरियां नहीं निकल रहीं हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, वहीं, दूसरी ओर इस दौरान वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में 9000, इंजीनियरिंग में 16,000 और वित्तीय सेक्टर में मात्र 649 नई नियुक्तियां हुईं।
विशेषज्ञों के अनुसार, लॉकडाउन में ढील के बावजूद अभी भी सभी सेक्टर में रिकवरी आनी बाकी है। इसमें एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) सेक्टर प्रमुख तौर पर हैं। देशभर में करीब छह करोड़ एमएसएमई कोरोना संकट से प्रभावित हैं।
इसमें देशभर के करीब 11 करोड़ कामगार काम करते हैं। लॉकडाउन में ढील के बावजूद अधिकांश एमएसएमई अभी भी 50 फीसदी क्षमता पर ही काम कर रहे हैं।
मांग और आपूर्ति में अंतर बड़ी बाधा
अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार में मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर होने से बड़े वेतन वाली नौकरियां सृजित नहीं हो रही हैं। इसके चलते लोग कम वेतन पर काम करने को मजबूर है। मैन्युफैक्चिरंग और फाइनेंस सेक्टर में बड़े पैमाने पर भर्तियां होती हैं लेकिन बाजार में मांग नहीं होने से इस सेक्टर में सुस्ती है। इन क्षेत्रों को पटरी पर आने में अभी वक्त लगेगा। इसलिए पढ़े-लिख पेशवरों को बड़े वेतन की नौकरी नहीं मिल रही है। अभी अधिकांश कंपनियां नई नियक्ति नहीं कर छोड़ गए या छंटनी किए गए पद को ही भड़ रही हैं।
युवा बेरोजगारी दर 32.5% पर पहुंचने की आशंका
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने यह अनुमान लगाया है कि अगर भारत सितंबर के अंत तक कोरोना महामारी पर काबू पाने में नकामयाब रहता है तो देश में युवा बेरोजगारी की दर बढ़कर 32.5 फीसदी पहुंच जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 61 लाख युवा कोरोना महामारी के कारण नौकरी गवां सकते हैं। यह एशिया और प्रशांत क्षेत्र में नौकरी खोने वालों का 40 फीसदी होगा। भारत के बाद पाकिस्तान में नौकरी खोने वाले युवाओं की संख्या सबसे अधिक होगी।
ई-कॉमर्स ने थोड़ा सहारा दिया
कोरोना महामारी की चपेट में आने से तमाम सेक्टर में छंटनी हुई लेकिन इस दौरान ई-कॉमर्स ने बड़ा सहारा देने का काम किया है। सोशल डिस्टेंसिंग के चलते ऑनलाइन खरीदारी तेजी से बढ़ी है। बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए ई-कॉमर्स कंपनियां बड़े पैमाने पर नई नियुक्तियां कर रही हैं लेकिन इसमें बड़े वेतन वाले जॉब नहीं है। अधिकांश कम वेतन वाली नौकरियां है।
विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती कायम
मांग कमजोर बने रहने से देश में जुलाई के दौरान विनिर्माण गतिविधियों में संकुचन कुछ और बढ़ा है। भारत विनिर्माण खरीद प्रबंधकों का सूचकांक (पीएमआई) जुलाई में 46 अंक पर रहा। एक माह पहले जून में यह 47.2 पर था। भारतीय विनिर्माण क्षेत्र के मामले में यह लगातार चौथा माह रहा है जब इसमें कमी दर्ज की गई। कई राज्यों में लॉकडाउन बढ़ने से कुछ व्यवसाय अभी भी बंद पड़े हैं। निर्यात आर्डर में भी गिरावट देखी गई है। अंतरराष्ट्रीय खरीदार आर्डर देने में हिचकिचा रहे हैं क्योंकि महामारी को लेकर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है। इस कारण बड़ी कंपनियों में रोजगार के अवसर अभी भी नहीं निकल रहे हैं।