केंद्र ने संभाली कमान: भलस्वा लैंडफिल को केंद्रीय मंत्री मनोहर खट्टर ने लिया गोद

भलस्वा लैंडफिल को कूड़ा मुक्त करने और क्षेत्र को विकसित करने की कमान केंद्र सरकार ने संभाल ली है। केंद्रीय शहरी विकास एवं आवास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस लैंडफिल साइट को गोद लिया है और एक साल के भीतर इसे कूड़ा मुक्त करने का लक्ष्य तय किया है। अब तक यह काम उपराज्यपाल संभाले हुए थे लेकिन केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से परियोजना को नई दिशा मिलने की उम्मीद है। खट्टर ने स्पष्ट कर दिया है कि भलस्वा को दिल्ली के लिए मॉडल साइट के रूप में विकसित किया जाएगा।
जून 2022 में ड्रोन आकलन से पता चला था कि भलस्वा लैंडफिल पर 73 लाख मीट्रिक टन कचरा जमा है। अब तक 62.36 लाख मीट्रिक टन लीगेसी कचरे की बायो-माइनिंग हो चुकी है। नौ जुलाई 2025 तक यहां 32.34 लाख मीट्रिक टन ताजा कचरा और मलबा भी डाला गया। फिलहाल 42.98 लाख मीट्रिक टन कचरा प्रोसेसिंग के लिए बचा है।
एमसीडी के आंकड़ों के मुताबिक मई 2025 में 3,04,899 मीट्रिक टन, जून में 2,85,843 मीट्रिक टन और जुलाई के पहले नौ दिनों में ही 1,18,549 मीट्रिक टन कचरे की बायो-माइनिंग की गई। साइट पर 18 ट्रोमेल मशीनें लगातार काम कर रही हैं और अतिरिक्त मशीनें भी लगाई गई हैं। मूल योजना दिसंबर 2026 तक 100 प्रतिशत बायो-माइनिंग पूरी करने की थी, लेकिन खट्टर की देखरेख में इसे एक साल के भीतर पूरा करने का प्रयास होगा।
70 एकड़ जमीन का पुनर्विकास
कचरे से खाली होने वाली लगभग 70 एकड़ जमीन पर एमसीडी ने पुनर्विकास की योजना बनाई है। 50 एकड़ पर आधुनिक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) सुविधाएं, ट्रांसफर स्टेशन और मटीरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) सेंटर, 10 एकड़ में 500 टन प्रतिदिन क्षमता वाला बायो-मीथेनेशन/बायो-सीएनजी प्लांट, 10 एकड़ में हरित पट्टी और प्रतिपूरक पौधरोपण करेगी।
पर्यावरणीय पहल
साइट पर बांस लगाए जाएंगे जो प्रदूषण सोखने में मदद करेंगे और मिट्टी को मजबूत भी बनाएंगे। साइट की बाउंड्री पर घना वन क्षेत्र विकसित करने की योजना है। ताकि आसपास की बस्तियों पर प्रदूषण का असर कम होगा।
चुनौतियों भरी राह
विशेषज्ञों का मानना है कि एक साल में पूरे लैंडफिल को कूड़ा मुक्त करना आसान काम नहीं है। इसमें न केवल मशीनों और संसाधनों की जरूरत होगी, बल्कि नई ताजा डंपिंग को भी रोकना एक बड़ी चुनौती होगी। एमसीडी और केंद्र सरकार दोनों के सामने यह परीक्षा की घड़ी होगी कि क्या वे तय समय सीमा के भीतर दिल्ली को इस कचरे के पहाड़ से निजात दिला पाएंगे।