कुंवारी लड़कियों के मुकाबले इस काम में ज्यादा आगे हैं शादीशुदा महिलाएं

माना जाता है कि शादी के बाद महिलाओं की जिंदगी चार दीवारी के बीच सिमट जाती है। परिवार की जिम्मेदारी के चलते शादीशुदा महिलाएं उतनी आजाद नहीं होतीं जितनी कुंवारी लड़कियां। लेकिन कुछ मामलों में इन कुंवारी लड़कियों को शादीशुदा महिलाओं ने पीछे छोड़ दिया है और वो है घर से निकलकर नौकरी पर जाना।
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इसके अलावा नौकरी पर ना जाने वाली शादीशुदा महिलाओं और नौकरी करने वाली महिलाओं के बच्चों के सेक्स रेशो में अंतर नजर आया। हाल ही में जारी हुए 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में 15-49 वर्ष के बीच की शादीशुदा महिलाएं, कुंवारी लड़कियों के मुकाबले ज्यादा संख्या में नौकरी करती पाई गई। इन महिलाओं पर ना सिर्फ परिवार बल्कि छोटे बच्चों की जिम्मेदारी भी थी।
हालांकि इसका नकारात्मक पहलू यह है नौकरी के लिए कि कम बच्चों की चाह में बेटी की बजाय बेटे को तवज्जो देने की वजह से सेक्स रेशों में भारी अंतर आया है। जहां तक उन महिलाओं की बात है जो नौकरी नहीं करती उनकी स्थिति भी बेहतर नहीं है। घर के कामों में व्यस्त रहने वाली महिलाओं के ना सिर्फ ज्यादा बच्चे होते हैं बल्कि उनके बच्चों में सेक्स रेशों की स्थिति और भी भयानक होती है जो परिवार में पितृसत्तात्मक मूल्यों की मजबूती का अभास करवाती है।
जनगणना के अनुसार 15-49 वर्ष की उम्र में 27 प्रतिशत कुंवारी महिलाओं की तुलना में 41 प्रतिशत शादीशुदा महिलाएं नौकरी कर रही हैं। एक्सपर्ट के अनुसार कुंवारी होने की वजह से युवतियों को उनके परिजन घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं देते। इसके अलावा कुछ स्कूल और कॉलेज में ही होती हैं।
2001 की जनगणना में शादीशुदा महिलाओं की फर्टिलिटी रेट में कुंवारी युवतियों के मुकाबले ज्यादा गिरावट दर्ज हुई। 15-49 वर्ष के बीच की कुंवारी युवतियों में जहां फर्टिलिटी रेट 2.9 कम हुई वहीं शादीशुदा में यह 3.3 तक कम हो गई।
दूसरी तरफ नौकरी ना करने वालों में फर्टिलिटी रेट 3.1 तक ज्यादा थी जो 2001 के मुकाबले केवल .1 ही कम थी। लेकिन दोनों ही तरह की महिलाओं से जन्म लेने वाले बच्चों के सेक्स रेशों में काफी अंतर नजर आया। जहां एक तरफ नौकरी करने वाली महिलाओं के बच्चों में सेक्स रेशो 2001 के 912 के मुकाबले 2011 में 901 रहा वहीं घर में रहने वाली महिलाओं में यह 901 से 894 पर आ गया।
इन दोनों के बीच में नजर आने वाली वो महिलाएं जो साल में कुछ समय के लिए ही काम करती हैं उनमें सिमीत बच्चों और बेटे की चाह चिंताजनक है। हालांकि उनमें फर्टिलिटी रेट अब भी ज्यादा थी लेकिन 2001 में 3.7 के मुकाबले 2011 में यह 3.4 थी।
सेक्स रेशो की बात करें तो इन महिलाओं में 2001 में जहां यह 911 था वहीं 2011 में यह 914 रहा। माना जा रहा है कि पैसों की कमी के चलते इन महिलाओं के परिवारों में उनके लैंगिक अबॉर्शन की कमी का कारण हो सकती है। इन्हें बेटे की चाह में भी कई मामलों में ज्यादा बार गर्भवती होने का दबाव झेलना पड़ता है।
इसके अलावा ट्रायबल और मुस्लिमों में भी अबॉर्शन को पसंद नहीं किया जाता। इन आंकड़ों पर शहरी और ग्रामीण इलाकों का भी असर नजर आया। जहां ग्रामीण इलाकों जहां आधी महिलाएं काम करती हैं वहीं शहरों में 22 प्रतिशत ही काम करती हैं। शहरी इलाकों में फर्टिलिटी रेट तेजी से कम हुई है और महिलाएं दो बच्चों तक सिमीत हो जाती हैं वहीं ग्रामीण इलाकों में यह 3.1 है।