कालीधर लापता : कमियों के साथ भी उजली है फिल्म, चुनौती पर खरे उतरे अभिषेक बच्चन

दक्षिण भारतीय फिल्‍मों की रीमेक की कड़ी में अब कालीधर लापता आई है। यह साल 2019 में रिलीज तमिल फिल्‍म के.डी की रीमेक है। मूल फिल्‍म की लेखक और निर्देशक मधुमिता ने ही रीमेक बनाई है। यह फिल्‍म जी5 पर स्‍ट्रीमिंग के लिए उपलब्‍ध है।

8 साल का बच्चा पूरी करता है कालीधर की इच्छा
कालीधर लापता की कहानी कालीधर (अभिषेक बच्‍चन) की जिंदगी के इर्दगिर्द है। उसे हेलोसिनेशन (hallucinations) की समस्‍या है। यानी जो नहीं होता है वो देखने और सोचने लगता है। वह अपना घर और जमीन बेचने को तैयार नहीं है। उसकी बीमारी का इलाज महंगी दवाइयां ही है। उसके दोनों छोटे भाई मनोहर (विश्‍वनाथ चटर्जी) और सुंदर (प्रियंक तिवारी) कर्ज में दबे हैं। कालीधर से छुटकारा पाने के लिए दोनों उन्‍हें कुंभ के मेले में छोड़ आते है। साथ ही खोया पाया शिविर में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज करा देते हैं।

भाइयों की तलाश में भटकते हुए कालीधर इटारसी जा रही बस में बैठता है। टिकट के पूरे पैसे न दे पाने की वजह से उसे उतार दिया जाता है। वह अनजान गांव पहुंचता है जहां उसकी मुलाकात आठ साल के अनाथ बालक बल्‍लू (दैविक बाघेला) से होती है।शुरुआती नोकझोंक के बाद दोनों में दोस्‍ती हो जाती है। कालीधर की इच्‍छाओं को पूरा करने में बल्‍लू मदद करता है। उधर, दोनों भाई जायदाद नहीं बेच पा रहे। वे कालीधर की तलाश करने में सरकारी अधिकारी सुबोध (मुहम्‍मद जीशान अयूब) की मदद लेते हैं। क्‍या वह कालीधर को खोज पाएंगे? क्‍या कालीधर वापस आएगा? कहानी इस संबंध में है।

हिंदी रीमेक में किये गए हैं बस ये बदलाव
कालीधर लापता की कहानी कुछ बदलावों को छोड़कर मूल फिल्‍म की तरह है। तमिल संस्करण में के.डी (मु रामास्वामी) 80 वर्षीय व्यक्ति है, जिसके बच्चे उसकी संपत्ति हड़पने के लिए उसे इच्छामृत्यु के माध्यम से मारने की योजना बनाते हैं, जबकि हिंदी संस्करण में कालीधर मध्यम आयु वर्ग का व्यक्ति है, जो हेलोसिनेशन से ग्रसित है।

रीमेक करते हुए मधुमिता को उत्‍तर भारत के परिवेश और कार्यशैली को समझने की जरूरत थी। चंद दृश्‍य सुसंगत नहीं लगते। जैसे भंडारे के खाने की जांच करने आया अधिकारी। कालीधर के बिरयानी खाने का अंदाज ऐसा है कि देखने वाले टूट पड़े यह पहलू खटकता है। इसी तरह कालीधर को बीमारी से ग्रसित बताया है, लेकिन लगता है लेखक बाद में खुद ही भूल गए कि उसे कोई बीमारी भी है। मसलन अपनी पूर्व प्रेमिका से मिलने जाते हुए उसकी याददाश्‍त कायम रहती है।

शुरुआत में फिल्‍म देखते हुए नाना पाटेकर अभिनीत फिल्‍म वनवास की भी याद आती है जहां पर एक पढ़ा लिखा परिवार डिमेंशिया (याददाश्‍त कमजोर पड़ना) की बीमारी से जूझ रहे अपने पिता को बनारस छोड़ने आता है। वहां उसकी मुलाकात एक युवा अनाथ लड़के से होती है। बाद में दोनों में लगाव हो जाता है। यहां पर उसे बच्‍चे से जोड़ दिया गया है। अगर इस हिस्‍से को नजरअंदाज करें तो बल्‍लू और कालीधर के बीच नोकझोंक, रूठना-मनाना, फिर दोनों के दोस्‍त बनने का सफर दिलचस्‍प है। कहीं कहीं संवाद भी चुटकीले हैं।

भूमिका से दर्शकों का दिल जीत पाए अभिषेक बच्चन?
अभिषेक बच्‍चन लगातार विविध पात्रों को निभाने को वरीयता दे रहे हैं। इस क्रम में उन्‍होंने कालीधर में अच्‍छा प्रयास किया है। उन्‍होंने कालीधर की तकलीफ, उलझन और दर्द को अपने भावों से समुचित तरीके से व्‍यक्‍त करते हैं। फिल्‍म का खास आकर्षण बाल कलाकार दैविक बाघेला है। वह अपनी भूमिका में बेहद सहज नजर आते हैं। उनका अभिनय सराहनीय है।

सुबोध की भूमिका में मुहम्‍मद जीशान अपने पात्र को उचित भाव देते हैं। मेहमान भूमिका में निम्रत कौर हैं। वह दी गई भूमिका साथ न्‍याय करती हैं। गीत सागर के लिखे गीत और अमित त्रिवेदी का संगीत कहानी के साथ सुसंगत है। खास तौर पर दिल बंजारा…यह रहे तेरी खोज में। सिनेमेटोग्राफर गैरिक सरकार ने अपने कैमरे से गांव को खूबसूरती से दर्शाया है। यह फिल्‍म अंत में सादगी से संदेश भी दे जाती है।

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