काम आई सोरेन की रणनीति, मोदी को छोड़ इन नेताओं को किया टारगेट

झारखंड विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की अगुवाई में बने जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन ने बीजेपी को करारी शिकस्त देते हुए एक और राज्य से सत्ता से बेदखल कर दिया. गठबंधन का चेहरा रहे जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने विपक्षी कमान संभाली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधे टकराने के बजाय मुख्यमंत्री रघुवर दास को टारेगट पर लिया. इसी का नतीजा है कि झारखंड का सियासी संग्राम हेमंत सोरेन बनाम नरेंद्र मोदी होने के बजाय हेमंत बनाम रघुवर के इर्द-गिर्द ही सिमटा रहा. विपक्षी गठबंधन को इस राजनीतिक फॉर्मूले से जबरदस्त चुनावी फायदा मिला.
बता दें कि ऐसे ही नजारा पिछले दिनों हुए हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में देखने को मिला था. हरियाणा में कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी के बजाय सीएम मनोहर लाल खट्टर को टारगेट किया था. महाराष्ट्र में शरद पवार ने भी क्षेत्रीय अस्मिता के जरिए मराठा कार्ड खेला था और पूरे चुनाव को देवेंद्र फडणवीस के इर्द-गिर्द समेट कर रखा है. हेमंत सोरेन ने झारखंड में इसी रणनीति को अपनाया और दिल्ली के सियासी रण में अरविंद केजरीवाल भी इसी रास्ते पर चलते हुए नजर आ रहे हैं.
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छह महीने में ही बदला नजारा
बता दें कि झारखंड में छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी ने जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन को करारी मात दी थी. प्रदेश की 14 में से 12 सीटें बीजेपी गठबंधन ने जीतकर विपक्ष का सफाया कर दिया था. लोकसभा चुनाव की हार से सबक लेते हुए विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन ने बीजेपी को घेरने के लिए रणनीति में बदलाव किया और नरेंद्र मोदी को टारगेट करने के बजाय मुख्यमंत्री रघुवर दास को निशाने पर लिया.
काम आई सोरेन की रणनीति
लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 55.29 फीसदी वोट मिले थे और 63 विधानसभा सीटों पर उसे विपक्षी से ज्यादा वोट मिले थे. इसमें बीजेपी को अकेले 58 सीटों पर बढ़त थी. झारखंड विधानसभा चुनाव में मोदी को निशाना न बनाना हेमंत सोरेन की रणनीति कारगार रही. हेमंत सोरेन ने पूरे चुनाव के दौरान रघुवर दास के कामकाज को लेकर ही बीजेपी को निशाना बनाया. इसी का नतीजा रहा कि बीजेपी की वोट फीसदी से लेकर सीटें में जबरदस्त कमी आई है. छह महीने के अंदर बीजेपी का वोट करीब 20 फीसदी घट गया. इतना ही नहीं बीजेपी अपनी सीटें भी बचा नहीं पाई और 37 से घटकर 25 पर सिमट गई.
हुड्डा ने भी खट्टर पर साधा निशाना
बता दें कि हरियाणा में इसी साल विधानसभा चुनाव हुए थे. कांग्रेस के सीएम पद का चेहरा रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा के सियासी संग्राम में नरेंद्र मोदी को घेरने के बजाय मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को निशाना बनाने की रणनीति अपनाई थी. कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व पूरी तरह चुनावी मैदान से दूर रहा और हुड्डा ने प्रदेश नेताओं के साथ मिलकर खट्टर के कामकाज पर बीजेपी को घेरना शुरू किया. इसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस भले ही सत्ता में वापसी न कर सकी हो, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और बीजेपी को बहुमत से दूर कर दिया था. हालांकि बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला की पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफल रही.
महाराष्ट्र में पवार समेत विपक्ष की रणनीति
ऐसे ही नजारा महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला. महाराष्ट्र में एनसीपी प्रमुख शरद पवार सहित विपक्षी दलों ने नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के बजाय देवेंद्र फडणवीस के कामकाज को लेकर बीजेपी को घेरा. इतना ही नहीं शरद पवार ने मराठा अस्मिता को अपना सबसे बड़ा मुद्दा बनाया. इसका नतीजा था कि बीजेपी की सीटें पहले से घट गईं. एनसीपी को जबरदस्त फायदा मिला. एनसीपी को 54 सीटें मिलीं और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं.
केजरीवाल भी इसी राह पर
दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. आम आदमी पार्टी के संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इस फॉर्मूले पर बढ़ते नजर आ रहे हैं. अरविंद केजरीवाल बीजेपी को घेरने के लिए नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के बजाय दिल्ली के बीजेपी नेताओं को निशाना बना रहे हैं. केजरीवाल अपने पांच साल के कामकाज को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं और नरेंद्र मोदी के नाम पर वह कहते हैं कि वह बड़े नेता और देश के नेता हैं, उनसे तो हमारा मतलब ही नहीं है. इस तरह से वो दिल्ली के सियासी रण में मोदी बनाम केजरीवाल के बजाय दिल्ली के क्षेत्रीय नेताओं पर फोकस कर रहे हैं.