कहानी गहनों की: भारत से मिली दुनिया को हीरे की चमक

अगर बात जूलरी की करें और हीरों का नाम न लिया जाए, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पुराने समय में हीरों का इस्तेमाल गहने बनाने के लिए नहीं किया जाता था। फिर हीरे के गहने बनने का चलन कैसे आया? हीरे के दिलचस्प इतिहास के साथ ऐसे कई सवालों के जवाब हम इस आर्टिकल में जानेंगे।

भारतीय संस्कृति में गहनों का अपना एक खास स्थान रहा है। तीज-त्योहार हो, शादियां हों या कोई शुभ अवसर, गहनों की चमक हमेशा से भारतीय परंपरा का अभिन्न हिस्सा रही है। सोना-चांदी के आभूषणों के साथ-साथ एक और रत्न है जो सदियों से लोगों की चाहत रहा है और वह है हीरा।

आज डायमंड जूलरी जितनी मॉडर्न लगती है, उसका इतिहास उतना ही पुराना और दिलचस्प है। दुल्हनों की शान से लेकर इंगेजमेंट रिंग्स की पहली पसंद बनने तक, डायमंड जूलरी ने एक लंबा और रोमांचक सफर तय किया है। आखिर क्या है डायमंड जूलरी की खासियत? कैसे बनते हैं ये खूबसूरत गहने? और असली-नकली डायमंड की पहचान कैसे करें? आज का यह आर्टिकल ऐसे ही सवालों के जवाब देगा-

डायमंड क्या है?

हीरा कार्बन का सबसे कठोर और चमकदार रूप है। धरती के अंदर लाखों वर्षों तक उच्च तापमान और दबाव में यह धीरे-धीरे बनता है। इसकी दमक, मजबूती और दुर्लभता इसे दुनिया का सबसे कीमती रत्न बनाती है। भारतीय इतिहास में, हीरों का इस्तेमाल सिर्फ सुंदरता बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि शुभता और शक्ति के प्रतीक के रूप में भी किया जाता था।

डायमंड का इतिहास

भारत ही वह जगह है, जहां से हीरों की कहानी शुरू हुई थी। दुनिया में सबसे पहले हीरे की खोज भारत में 2,000–3,000 साल पहले हुई। हीरों का उल्लेख ऋग्वेद और अर्थशास्त्र में भी मिलता है। आपको जानकर हैरानी हो सकती है, लेकिन हीरों का इस्तेमाल पहले गहनों के लिए नहीं किया जाता था। इन्हें रोशनी को रिफ्रैक्ट करने के लिए इस्तेमाल में लिया जाता था और तावीज आदि में इनका इस्तेमाल होता था। हालांकि, वक्त के साथ हीरे की कीमत बढ़ती गई और इसका इस्तेमाल गहने बनाने में किया जाने लगा।

मुगल और राजघरानों के दौर में हीरों का स्वर्ण युग

भारत में 16वीं से 19वीं शताब्दी तक मुगलों का शासन रहा। मुगल अपनी विलासिता के लिए जाने जाते थे। उनके शासन में कई दुर्लभ चीजें मुगल दरबार का हिस्सा बनीं, जिनमें हीरा भी शामिल था। दुनिया भर में मशहूर कोहिनूर भी पहले मुगल दरबार का हिस्सा था, जो

यूरोप में हीरों का प्रवेश और जूलरी में नई शुरुआत

ऐसा माना जाता है कि लगभग एक हजार साल तक हीरे सिर्फ भारत में ही रहे। भारत से पहला हीरा यूरोप से 327 BC में सिकंदर महान लेकर गए, लेकिन जूलरी में डायमंड का इस्तेमाल लगभग और कई सालों के बाद शुरू हुआ। 1074 में पहली बार हंगरी की एक रानी के मुकुट में डायमंड जड़े गए। हालांकि, अभी भी पॉइन्ट कट डायमंड का इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ। लगभग 15वीं सदी में पॉइन्ट कट का इजात हुआ और हीरों को उनकी नेचुरल शेप में काटा जाना शुरू हुआ। इसके पहले सिर्फ कुछ ही आकार के हीरों का इस्तेमाल किया जाता था।

हीरों से इंगेजमेंट रिंग का जन्म

1477 में ऑस्ट्रिया के Archduke Maximilian ने Mary of Burgundy को डायमंड रिंग देकर शादी के लिए प्रोपोज किया और यहीं से शुरू हुई एंगेजमेंट रिंग में डायमंड की परंपरा। हालांकि, यह सिर्फ ऊंचे तबके के लोगों तक सीमित रहा।

कैसे बनाए जाते हैं डायमंड के गहने?

हीरों के गहने बनाना एक बेहद बारीक कला का काम है-

प्राकृतिक डायमंड धरती से माइनिंग कर निकाले जाते हैं।

हीरों को गोल्ड, प्लैटिनम या रोज गोल्ड में सेट किया जाता है।

भारतीय जूलरी में अक्सर पन्ना, रूबी और नीलम के साथ हीरों का कॉम्बिनेशन भी देखने को मिलता है, जो उस आभूषण की शान में चार चांद लगा देते हैं।

माइन्ड डायमंड और लैब-ग्रोन डायमंड क्या फर्क है?

माइन्ड डायमंड

माइन्ड डायमंड धरती से निकाले जाते हैं। ये काफी दुर्लभ और महंगे होते हैं, क्योंकि हीरे बनने में लाखों साल लग जाते हैं। इसलिए ये इतने दुर्लभ माने जाते हैं और इनकी कीमत भी काफी ज्यादा होती है।

लैब-ग्रोन डायमंड

लैब में उन्हीं प्राकृतिक परिस्थितियों को बनाकर इन्हें तैयार किए जाते हैं। ये डायमंड भी असली होते हैं, लेकिन खुदाई करके निकाले गए डायमंड की तुलना में इनकी कीमत कम होती है।

क्या इनकी पहचान संभव है?

माइन्ड डायमंड और लैब ग्रोन डायमंड में अंतर नंगी आंखों से नहीं किया जा सकता। हालांकि, GIA/IGI जैसी लैब रिपोर्ट या हाई-पावर माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल करके इनकी परख की जा सकती है।

कैसे करें असली और नकली डायमंड की पहचान?

आजकल बाजार में नकली या सिंथेटिक पत्थरों की भरमार है। ऐसे में असली हीरों की पहचान करने के लिए कुछ आसान तरीके अपनाए जा सकते हैं-

फॉग टेस्ट- असली हीरा धुंध को तुरंत साफ कर देता है, नकली में कुछ सेकंड लगते हैं।

वॉटर टेस्ट- असली डायमंड भारी होता है, इसलिए पानी में डूब जाता है।

चमक व कॉन्ट्रास्ट- असली हीरे में सफेद और काले कॉन्ट्रास्ट की चमक दिखती है। सूरज की रोशनी में असली हीरे में से इंद्रधनुष जैसी चमक देखने को मिलती है। वहीं नकली हीरे फीके नजर आते हैं।

खरोंच न लगना- हीरा दुनिया का सबसे कठोर प्राकृतिक पदार्थ है। इसलिए इसे खरोंचना आसान नहीं।

प्रमाणपत्र- GIA, IGI या SGL जैसे प्रमाणपत्र ही असली हीरे का सबसे सटीक सबूत होते हैं।

हीरों की कहानी भले ही भारत से शुरू हुई, लेकिन आज दुनिया भर में यह अपनी चमक बिखेर रहा है। हजारों साल पुराने इतिहास, मुगलों की विरासत, आधुनिक तकनीक और भावनाओं की अभिव्यक्ति, डायमंड जूलरी इन सबका खूबसूरत संगम है।

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