कहानी गहनों की: आग में तपकर बनता है बेशकीमती कुंदन

कुंदन भारत के प्राचीनतम आभूषणों में से एक है, जो अपनी जटिल कारीगरी और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। सदियों से चली आ रही इस कला में सोने के ढांचे में कांच के टुकड़ों को जोड़ा जाता है। कुंदन आभूषण अपनी भव्यता के कारण शादियों और विशेष अवसरों पर पहने जाते हैं, और इन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज कर रखा जाता है।

भारतीय संस्कृति में गहनों की एक खास जगह रही है। शादी-ब्याह का मौका हो या कोई तीज-त्योहार महिलाओं की खूबसूरती बढ़ाने के लिए सदियों से गहनों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। फूलों के आभूषणों से लेकर सोना-चांदी तक, गहनों के कई प्रकार लोगों के बीच लोकप्रिय है। कुंदन जूलरी इन्हीं में से एक है, जो पिछले कुछ समय से लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है।

खासकर शादी के लिए यह दुल्हनों की पहली पसंद बन चुकी है। आम से लेकर खास, इन दिनों हर कोई कुंदन के गहनों का मुरीद हुआ जा रहा है और हुआ भी क्यों न जाए। इसकी खूबसूरती ही कुछ ऐसी है, जिसे देखते ही लोगों की निगाहें ठहर जाती है। आखिर क्यों इतनी खास है कुंदन की जूलरी और क्या है इसका इतिहास। ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब देगा आज का हमारा यह आर्टिकल-

कुंदन आभूषण क्या है?

कुंदन के आभूषण आज से नहीं, लंबे समय से एक खास महत्व रखते हैं। यह एक विरासत है, जो भारत के शाही युग का एहसास कराती है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी कुंदन के आभूषणों की बहुमूल्य कला आगे बढ़ती जा रही है और आज भी हर एक महिला की खूबसूरती में ये आभूषण चार चांद लगा रहे हैं।

कुंदन सोने से बना एक प्रकार का आभूषण है, जिसे सोने को पिघलाकर बनाया जाता है। इस तरह के गहनों में मुख्य तौर पर 24 कैरेट शुद्ध सोने का इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल, 24 कैरेट थोड़ा नरम होता है, जिसकी वजह से इससे पूरा आभूषण नहीं बनाया जा सकता है और इसलिए सोने के इस रूप का इस्तेमाल गहनों में सिर्फ जड़ाई वाले हिस्से के लिए ही किया जाता है। कुंदन के गहनों को भारत के सबसे पुरानों आभूषणों में से एक माना जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दिनों लोगों की पहली पसंद बना कुंदन का इतिहास 2500 साल से भी ज्यादा पुराना है।

क्या है कुंदन का इतिहास?

जैसाकि हम आपको ऊपर ही यह बता चुके हैं कि कुंदन भारत के सबसे पुराने आभूषणों में से एक माना जाता है। बात करें अगर इसकी उत्पत्ति की, तो गहनों की इस खूबसूरत कला की शुरुआत 116वीं शताब्दी में राजस्थान और गुजरात के राजपूत दरबारों में हुई थी। हालांकि, बीतते समय के साथ मुगलों और बाद में हैदराबाद के निजामों ने भी इस कला को खूब पसंद किया, जिसने कुंदन आभूषणों को खूब संरक्षण दिया। यही वजह है कि आज भी इन आभूषणों पर मुगल और राजपूत काल की कला और शिल्प कौशल के निशान देखने को मिलते हैं।

कैसे बनाए जाते हैं कुंदन के आभूषण?

अक्सर कई लोग कुंदन और पोल्की आभूषणों में कन्फ्यूज हो जाते हैं, क्योंकि इन दोनों की आभूषणों की डिजाइन में काफी समानताएं होती हैं। हालांकि, इन्हें बनाने की तकनीक एक-दूसरे से काफी अलग होती है। कुंदन के आभूषणों को बनाने की प्रक्रिया बेहद ध्यान से बारीकी के साथ पूरी की जाती है। इसके लिए सबसे पहले बेस यानी आधार बनाने के लिए सोने की धारियों को पीटा जाता है औक फिर इसे मनचाहा आकार दिया जाता है।

इस तरह के गहनों को बनाने के लिए सोने का इस्तेमाल कम ही किया जाता है, क्योंकि इन गहनों में कई तरह के बेशकीमती पत्थरों और रत्न जैसे पन्ना, नीलम और माणिक को सावधानी के साथ जड़ा जाता है, जिससे इसे कुंदन कहा जाता है। कुंदन के जूलरी की बारीक नक्काशी इसे बेहद खास और आकर्षक बनाती है।

कैसे करें असली और नकली कुंदन की पहचान?

इन दिनों बाजार में नकली और मिलावटी चीजें धड़ल्ले से बिक रही है। ऐसे में असली और नकली कुंदन की पहचान करना काफी मुश्किल हो जाता है। असली कुंदन की पहचान करने के लिए आभूषण और कारीगरी की बुनियादी समझ सबसे ज्यादा जरूरी है। साथ ही इसकी पहचान करने के लिए जौहरी का गुणवत्ता प्रमाणपत्र भी होना चाहिए। पहचान करने के लिए गहनों पर लगी प्रामाणिक मुहरों पर गौर करना चाहिए।

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