कविता : मानवता शर्मसार हुई
इंसान नही हैवान था
जो ऐसा कुकृत्य किया
एक बेजुबान प्राणी को
फटाखे से मार दिया
कितनी तड़पी होगी
जब मुँह में आग लगी होगी
तपिश आग की बुझाने
नीर नदी में गयी थी
कितनी पीड़ा सही होगी
उसके अजन्मे बच्चे ने
माँ संग प्राण त्याग दिए
उस निरपराध प्राण ने
ऐसा कृत्य करते हुए
लाज तनिक न आयी
एक मनुज के कारण
मानवता शर्मसार हुई l
कवयित्री:-गरिमा राकेश गौतम