कविता : कण कण में भगवान
आरजू तो रहती है ईश्वर मिलन की
पर हसरत कहाँ पूरी होती यहाँ सभी
खुली आँखों से जो उसे पाना चाहोगे
तो दर्शनो को प्यासे रह जाओगे।
एक बार बंद आँखों से मन से पुकारो तो
अपने मन में उसे मुस्कराते पाओगे।
कहाँ ढूंढ़ते हो उसे मंदिर, मज्जिदो में
तीर्थराज प्रयाग और काशी,कर्बला में
एक जगह नही उसकी सत्ता विराजमान
सृष्टि के हर कण में बसा है भगवान
शायद यही बताने को उसने रचा ये जाल
बंद कर दिये अपने सभी मन्दिरो के द्वार
सेवा भाव से मानवता की सेवा तुम कर लो
बस यही सिखा रहा है भगवान हमको आज।
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