कर्फ्यू के बीच त्रिवेंद्र रावत ने लिए थे सात फेरे, पढ़ें जर्नलिज्म से ‘UK’ के CM बनने तक का सफर

देहरादून. उत्तराखंड में बीजेपी का बहुमत आने के बाद सीएम पर बना सस्पेंस खत्म हो गया है। यहां के डोईवाला से MLA बने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर बीजेपी ने भरोसा जताया है। उन्हें राज्य की जिम्मेदारी दी गई है। त्रिवेंद्र सिंह को विधायक दल का नेता चुन लिया गया है। वे शनिवार की शाम को सीएम पद की शपथ लेंगे।कर्फ्यू के दौरान हुई थी शादी

– त्रिवेन्द्र सिंह रावत का जन्म 20 दिसंबर 1960 को पौड़ी गढ़वाल में हुआ था।

– इनके पिता का नाम प्रताप सिंह रावत है। 9 भाई-बहनों में त्रिवेंद्र सिंह सबसे छोटे हैं।

– रावत की 10 वीं तक की पढ़ाई पौड़ी जिले के सतपुली इंटर कॉलेज से हुई है।      

– वहीं, 12वीं की पढ़ाई पौड़ी के ही एकेश्वर इंटर कॉलेज से हुई है।  

– लैंसडाउन के जयहरीखाल डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन और श्रीनगर यूनिवर्सिटी से मास्टर की डिग्री हासिल की।

– त्रिवेंद्र सिंह पढ़ाई के दिनों में पत्रकार बनना चाहते थे। यही वजह है कि उन्होंने जर्नलिज्म की पढ़ाई की थी।

– श्रीनगर यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में उन्होंने मास्टर डिग्री की पढ़ाई की थी।

– पेशे से टीचर सुनीता रावत से इनकी शादी हुई है। लेकिन, शादी की कहानी बड़ी इंटरेस्टिंग है।

– उत्तराखंड आंदोलन की वजह से 1995 में पौड़ी शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था।

– रावत की शादी भी इसी समय होनी थी। इस बीच कर्फ्यू में 10 घंटे की छूट मिली थी।

– कर्फ्यू में छूट मिलते ही 10 घंटे के अंदर यहां के काण्डई गांव में त्रिवेंद्र सिंह रावत की शादी हो गई थी।  

19 साल की उम्र में RSS से जुड़े थे

– त्रिवेंद्र सिंह रावत 1979 में RSS से जुड़ गए थे। यहीं से रावत की पॉलिटिकल करियर की शुरुआत हुई।

– पढ़ाई पूरी होने के बाद वे देहरादून आ गए थे। यहां उन्होंने 1981 में संघ के प्रचारक के रूप में काम करने का निर्णय लिया।

– वे गांव-गांव जाकर प्रचारक का काम करने लगे। इससे वे जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़े।

– साल 1985 में देहरादून महानगर के प्रचारक बने। वे दिन-रात संघ के काम में जुटे रहे।

– संघ के बड़े पदाधिकारी त्रिवेंद्र रावत के काम से काफी खुश थे। साल 1993 में वे बीजेपी के क्षेत्रीय संगठन मंत्री बन गए।

– इसके बाद संघ के साथ-साथ बीजेपी में भी वे काफी एक्टिव रहने लगे। उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में उन्होंने काफी काम किया।

– बीजेपी के सीनियर नेताओं ने 1997 और 2002 में प्रदेश संगठन महामंत्री बनाया गया।

उत्तराखंड अलग राज्य बनने पर बने विधायक

– उत्तराखंड अलग राज्य बने पर 2002 में पहली बार त्रिवेंद्र सिंह रावत डोईवाला से जीतकर विधायक बने।

– इसके बाद 2007 में भी डोईवाला से जनता ने उन्हें दोबारा विधायक चुना।

– दो बार विधायक बनने से त्रिवेंद्र रावत की पहचान पार्टी में भी काफी बढ़ गई थी।

– 2007 में बीजेपी की सरकार बनने पर वे राज्य के कृषि मंत्री बनाए गए।

– कृषि मंत्री के तौर पर उन्होंने राज्य के किसानों के लिए काफी काम किया।

– लेकिन, 2012 में वे डोईवाला सीट छोड़कर रायपुर सीट से उम्मीदवार बने थे।

– यहां से वे जीत नहीं सके। फिर, 2014 में डोईवाला सीट पर हुए उपचुनाव में भी त्रिवेंद्र रावत की हार हो गई थी।  

राज्य प्रभारी से प्रदेश के सीएम तक का सफर

– झारखंड चुनाव से पहले बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को वहां का प्रभारी बनाया।

– रावत ने स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर काफी काम किया। इसका रिजल्ट भी देखने को मिला।

– झारखंड में बीजेपी की सरकार बन गई। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच त्रिवेंद्र सिंह का कद बढ़ गया।

– इसके बाद यूपी में भी चुनाव के दौरान वे सह प्रभारी रहे।

– बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ उन्होंने यूपी में काफी प्लानिंग किया।

– शाह और पीएम मोदी भी त्रिवेंद्र सिंह की नेतृत्व क्षमता को समझ चुके थे।

– इसके बाद यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी को बहुमत मिल गई। सीएम के लिए रावत का नाम आगे आने लगा।

– त्रिवेंद्र सिंह रावत तीसरी बार डोईवाला से विधायक चुने गए हैं। संघ में भी लोग उन्हें काफी पसंद करते हैं।

– यही वजह है कि उन्हें बीजेपी विधायक दल का नेता चुन लिया गया और रावत उत्तराखंड के सीएम बन गए।  

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