करनाल में 40 पेड़ काटने का मामला: SC की हरियाणा सरकार को फटकार

करनाल में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण की ग्रीन बैल्ट के 40 हरे-भरे पेड़ काटे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार और जिम्मेदार अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई है। न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि सरकार की ओर से दिया गया स्पष्टीकरण आंखों में धूल झोंकने जैसा है और कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास प्रतीत होता है।

कोर्ट ने एच.एस.वी.पी. को 3 महीनों के भीतर ग्रीन बैल्ट को उसकी मूल अवस्था में बहाल करने का आदेश दिया है। यह मामला कर्नल दविंदर सिंह राजपूत बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य से जुड़ा है जो पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के गत 3 मई के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका के रूप में सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

गत 15 अक्तूबर को सुनवाई दौरान कोर्ट ने ग्रीन बैल्ट में किसी भी तरह के विकास कार्य पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। साथ ही एच.एस.वी.पी. के मुख्य प्रशासक को निर्देश दिया था कि वह रिकार्ड सहित कोर्ट में उपस्थित होकर यह स्पष्ट करें कि ‘विकास’ के नाम पर 40 से ज्यादा पेड़ किन परिस्थितियों में काटे गए। 26 नवम्बर की सुनवाई में कोर्ट ने अधिकारियों की कार्रवाई को ‘चौंकाने वाला’ बताते हुए कहा कि सड़क चौड़ीकरण के नाम पर ग्रीन बैल्ट को नष्ट करना किसी भी प्रकार से औचित्यपूर्ण नहीं है। पीठ ने 2 सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था जिसमें पेड़ काटने की पूरी प्रक्रिया और औचित्य बताया जा सके।

शहरी विकास प्राधिकरण का तर्क कोर्ट ने सिरे से खारिज किया

प्राधिकरण की ओर से दायर हलफनामे में दावा किया गया था कि सैक्टर-9 के निवासियों और स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए ग्रीन बैल्ट से होकर 10 मीटर चौड़ी संपर्क सड़क बनाना आवश्यक था ताकि उन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग-44 तक सुरक्षित पहुंच मिल सके लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए साफ कहा कि यह कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास है। पीठ ने कहा कि सड़क का निर्माण वास्तव में ग्रीन बैल्ट को काटकर किया गया है और इसके पीछे की मंशा ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ नहीं बल्कि ‘किसी विशेष कार्यालय को आसान पहुंच देना’ प्रतीत होती है।

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