कभी सीमेंट की पाइप में रहता था ‘मोना डार्लिंग’ का बॉस
अजीत पर अपने इस सपने को पूरा करने का जुनून इस कदर सवार था कि उन्होंने अपनी किताबें तक बेच डालीं थीं। 1940 में अजीत ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की। शुरुआती दौर में उन्होंने कुछ फिल्मों में बतौर हीरो काम किया लेकिन वो फ्लॉप रहे।
जितनी भी फिल्मों में अजीत हीरो के तौर पर नजर आए वो सभी कामयाब नहीं हो पाईं। लगातार फ्लॉप से निराश ना होकर अजीत ने फिल्मों में विलेन के रोल करने शुरू दिए।
विलेन बनकर तो अजीत ने ऐसा स्टारडम पाया जो शायद ही किसी हीरो को मिला हो। विलेन के तौर पर ना सिर्फ उनके किरदारों को सराहा गया बल्कि उनके कई डायलॉग और वन लाइनर जबरदस्त हिट हुए।
आज भी जब अजीत के नाम का जिक्र होता है तो अनायास ही ‘मौना डार्लिंग’, ‘लिली डोंट भी सिली’ और ‘लॉयन’ जैसे डॉयलॉग जुबां पर आ जाते हैं।
अजीत ने विलेन और उसके किरदार की ऐसी परिभाषा और लुक गढ़ा जो हमेशा के लिए हिंदी सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है। उनके जैसा स्टायलिश विलेन ना तो आज तक हुआ है और ना ही कभी होगा।
लेकिन अजीत का फिल्मी सफर आसान नहीं रहा था। घर से भागकर मुंबई आने पर अजीत ने ऐसे दिन देखे जिनका जिक्र कर उनके बेटे भी इमोशनल हो जाते हैं।
मुंबई आने के बाद अजीत का कोई ठोस ठिकाना नहीं था।
उन दिनों लोकल एरिया के गुंडे उन पाइपों में रहने वाले लोगों से भी हफ्ता वसूली करते थे और जो भी पैसे देता उसे ही उन पाइपों में रहने की इजाजत मिलती।
एक दिन एक लोकल गुंडे ने अजीत से भी पैसे वसूलने चाहे। अजीत ने मना कर दिया और उस लोकल गुंडे की जमकर धुनाई की। उसके अगले दिन से अजीत खुद लोकल गुंडे बन गए।
इसका असर ये हुआ कि उन्हें खाना-पीना मुफ्त में मिलने लगा और रहने का भी बंदोबस्त हो गया। डर की वजह से कोई भी उनसे पैसे नहीं लेता था।
पिता नहीं चाहते थे अजीत बनें एक्टर
अजीत का अपने पिता से बड़ा लगाव था। वो निजाम की सेना में थे और काफी कट्टर स्वभाव के थे। इसी स्वभाव के चलते अजीत ने अपने पिता को एक्टर बनने के ख्वाब के बारे में नहीं बताया, लेकिन जब उनके पिता को अजीत के एक्टर बनने के बारे में पता चला तो वो बहुत गुस्सा हुए।
अजीत अपने पिता को हमेशा ही अच्छे-अच्छे गिफ्ट भेजते, लेकिन उन्होंने उन गिफ्ट्स को सहेजकर एक अलमारी में रखा और कभी इस्तेमाल नहीं किया। एक दिन अजीत के पिता ने उन्हें वो अलमारी दिखाई जिसमें सारे गिफ्ट रखे थे और अपने बेटे से कहा कि उन्होंने वो आज तक इसलिए इस्तेमाल नहीं किए क्योंकि वो उन्हें हराम समझते थे।
जाहिर है अजीत से पिता का कुछ खास लगाव नहीं रहा। शायद इसीलिए क्योंकि वो चाहते थे कि अजीत एक्टर नहीं बल्कि डॉक्टर या फिर कुछ और बनें।