कब और क्यों मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती?

यदि कोई मानव मात्र पर उपकार करें उनकी पूजा-अर्चना करना स्वाभाविक है। इन्हीं में से एक हैं भगवान विश्वकर्मा (Vishwakarma Puja 2025) जिन्हें निर्माण वास्तुकला शिल्पकला यांत्रिकी एवं तकनीकी कौशल का देवता माना जाता है। वे सभी शिल्पकारों इंजीनियरों कारीगरों बढ़ई और तकनीकी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों के आराध्य देव हैं।

भारत की परंपरागत विशेषता गुणग्राहकता और कृतज्ञता रही है कि जो हम पर कोई उपकार करता है, हम उसका आदर करना आरंभ कर देते हैं। आज के वैज्ञानिक युग में भी यदि कोई व्यक्ति त्याग बलिदान का कोई बड़ा उदाहरण उपस्थित करता है अथवा लोक कल्याण के लिए कोई असाधारण कार्य करता है, तो हम उसकी प्रशंसा करते हैं और उनकी प्रतिमाओं को मंदिरों में स्थापित भी करते हैं।

यदि कोई मानव मात्र पर उपकार करें, उनकी पूजा-अर्चना करना स्वाभाविक है। इन्हीं में से एक हैं भगवान विश्वकर्मा, जिन्हें निर्माण, वास्तुकला, शिल्पकला, यांत्रिकी एवं तकनीकी कौशल का देवता माना जाता है। वे सभी शिल्पकारों, इंजीनियरों, कारीगरों, बढ़ई और तकनीकी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों के आराध्य देव हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और उन्हें सृष्टि का प्रथम वास्तुकार माना जाता है। उनकी गणना पंचदेवों में की जाती है और वे दिव्य निर्माणों के अधिपति हैं। विश्वकर्मा जी को कई चमत्कारी और दिव्य निर्माणों के लिए जाना जाता है- स्वर्ग लोक, इंद्रपुरी अमरावती, पुष्पक विमान, द्वारका नगरी, इंद्र का वज्र, शिवजी का त्रिशूल, विष्णु का सुदर्शन चक्र और कुबेर का पुष्पक रथ भी इनके निर्माण माने जाते हैं।

भगवान विश्वकर्मा जयंती के दिन- फैक्ट्रियों, कार्यशालाओं और उद्योगों में इंजीनियर, आर्किटेक्ट, शिल्पकार, ड्राइवर आदि लोग इस दिन उनकी विशेष पूजा करते हैं। विश्वकर्मा जी ने जो भी निर्माण किया, वह अत्यंत सुंदर, टिकाऊ और कलात्मक था। कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता, यदि उसे पूरी निष्ठा और कुशलता से किया जाए।

अगर आप ईमानदारी, लगन और नवाचार के साथ कार्य करें, तो आपके इष्टदेव भी आपके निर्माण में सहायक के रूप में होते हैं। भगवान विश्वकर्मा का आदर्श यह है कि परिश्रम, रचना और नवाचार को ही ईश्वर की पूजा समझा जाए। वे हमें यह प्रेरणा देते हैं कि निर्माण केवल भौतिक नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भी हो सकता है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि उनकी कृपा से कार्यों में श्रेष्ठता, कलात्मकता और तकनीकी दक्षता की प्राप्ति होती है। भगवान विश्वकर्मा जी ने अनेक देवताओं के साथ समन्वय में काम किया।

यह आधुनिक परियोजना प्रबंधन की बहुत बड़ी सीख देता है। भगवान विश्वकर्मा जी की कार्यशैली आज भी हमें सिखाती है कि यदि हम समन्वय, योजना और संसाधनों के प्रबंधन में दक्ष हों, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं। यह केवल आस्था की बात नहीं है, वरन व्यावहारिक जीवन के लिए भी अत्यंत उपयोगी सीख है।

जब परिवार के सभी सदस्य सामंजस्य से कार्य करते हैं, तब सुख-शांति बनी रहती है। समाज में संगठित प्रयासों से सामाजिक सुधार और विकास संभव होता है। राष्ट्र में एक कुशल नेतृत्व और योजनाबद्ध विकास ही किसी राष्ट्र को समृद्ध बनाता है।

भगवान विश्वकर्मा धार्मिक प्रतीक के साथ साथ ज्ञान, तकनीक और सृजनात्मकता के प्रतीक हैं। वर्तमान युग में जब विज्ञान और तकनीक का बोलबाला है, तब विश्वकर्मा जी की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। वे हमें यह सिखाते हैं कि सृजन ही जीवन का मूल है और प्रत्येक कार्य अगर श्रद्धा और निष्ठा से किया जाए, तो वह ईश्वर की उपासना बन जाता है।

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