कब और कैसे हुई गोवर्धन पूजा की शुरुआत?

वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह में दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। वहीं, इस उत्सव का समापन भाई दूज के दिन होता है। दीवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व का मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि इस त्योहार की शुरुआत कैसे हुई है? अगर नहीं पता है, तो ऐसे में आइए जानते हैं इसकी खास वजह के बारे में।
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस पर्व को मथुरा समेत देशभर में बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना करने का विधान है और 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन पूजा करने से साधक को सभी दुखों से छुटकारा मिलता है और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। ऐसे में आइए इस आर्टिकल में पढ़ते हैं गोवर्धन पर्वत की कथा।
गोवर्धन पूजा 2025 डेट और शुभ मूहर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार गोवर्धन पूजा का त्योहार 22 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत- 21 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 54 मिनट पर
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का समापन- 22 अक्टूबर को रात 08 बजकर 16 मिनट पर
इस दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 20 मिनट से 08 बजकर 38 मिनट तक है। वहीं दूसरा मुहूर्त दोपहर 03 बजकर 13 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 49 मिनट तक है।
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04 बजकर 45 मिनट से 05 बजकर 35 मिनट तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 58 मिनट से लेकर 02 बजकर 44 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05 बजकर 44 मिनट से 06 बजकर 10 मिनट तक
अमृत काल- दोपहर 04 बजे से 05 बजकर 48 मिनट तक
गोवर्धन पूजा कथा
गोवर्धन पर्वत का वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में देखने को मिलता है। पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार का समय था कि इंद्रदेव को अभिमान हो गया था, तो ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का घमंड तोड़ने के लिए एक लीला रची। एक दिन सभी ब्रजवासी पूजा की तैयारी कर रहे थे और भोग के लिए कई तरह के पकवान बना रहे थे। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से पूछा कि ये सभी ब्रजवासी किस चीज की तैयारी कर रहे हैं। तो उन्होंने बताया कि इंद्र देव पूजा की तैयारी कर रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने माता से पूछा कि इंद्रदेव की पूजा किसलिए कर रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि इंद्रदेव इंद्रदेव की वर्षा से खूब पैदावार होती है। प्रभु ने कहा कि वर्षा करना इंद्र का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है, तो गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि वहां पर हमारी चरती हैं।
इसके बाद सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इससे इंद्रदेव को क्रोध आया और बारिश शुरू कर दी, जिसकी वजह से इंद्रदेव प्रकोप से बचने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्र देव को अपनी गलती का अहसास हुआ। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा की शुरुआत हुई।