कथक करना शुरू किया तो लोगो ने ‘वेश्या’ बुलाया, और परिवार का किया बहिष्कार

देश की मशहूर कथक डांसर सितारा देवी की आज 97वीं बर्थ एनिवर्सरी है। काशी के कबीरचौरा की गलियों में पली ‘धन्नो’ मुंबई की फिल्मी दुनिया में ‘सितारा’ बनकर छा गईं थीं। धनतेरस के दिन पैदा होने की वजह से माता-पिता ने उनका नाम धनलक्ष्मी रखा और प्यार से उन्हें धन्नो कहते थे। उन्हें दुनिया सितारा देवी के नाम से जानती है। उनके कथक की कोई सानी नहीं थी। बनारस घराने से कथक की महारत हासिल कर उन्होंने इस डांस स्टाइल को विश्व पटल तक पहुंचाया।

 कथक करना शुरू किया तो लोगो ने 'वेश्या' बुलाया, और परिवार का किया बहिष्कारसितारा देवी के शिष्य विशाल कृष्ण ने बताया कि 16 साल की उम्र में कोलकाता के शांति निकेतन में एक संगीत प्रस्तुति के दौरान उनके नृत्य से प्रभावित होकर गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें ‘कथक क्वीन’ की उपाधि दी थी। कथक नृत्य में उनकी मयूर की गत, थाली की गत, जटायु मोक्ष, गत निकास की प्रस्तुति बेमिसाल थी। सितारा देवी का निधन 25 नवंबर 2014 में लंबी बीमारी के बाद हो गया था। कथक करना शुरू किया तो लोगो ने 'वेश्या' बुलाया, और परिवार का किया बहिष्कारउन्होंने मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान लगातार 11:30 घंटे तक डांस करने का रिकॉर्ड भी बनाया था। सितारा देवी का जन्म 1920 में कोलकाता के नाथुन बाजार में हुआ था। 5 साल की उम्र में वह पैतृक आवास बनारस के कबीरचौरा आ गई थीं। सिने तारिका के रूप में भी सितारा देवी ने बालीवुड में अपनी खास जगह बनाई थी। 1935 में फिल्म ‘वसंत सेना’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाली इस नृत्यांगना ने दर्जन भर से अधिक फिल्मों में अपने अभिनय से सिने दर्शकों के बीच लोकप्रियता अर्जित की।

कथक करना शुरू किया तो लोगो ने 'वेश्या' बुलाया, और परिवार का किया बहिष्कारसाल 1933 में बॉलीवुड से काशी आए फिल्म निर्माता निरंजन शर्मा को एक ऐसी अदाकारा की तलाश थी जिसमें नृत्य के साथ  सुरीले गायन की भी प्रतिभा हो। कबीर चौरा में उनकी नजर उन दिनों कथक नर्तक पं. सुखदेव महाराज की सबसे छोटी बेटी धन्नो के हुनर पर पड़ी। बेटी का भविष्य संवारने के लिए चिंतित पिता सुखदेव ने धन्नो को फिल्म में काम करने के लिए मुंबई भेजने के आग्रह को स्वीकार करने में तनिक भी देरी नहीं लगाई। कथक करना शुरू किया तो लोगो ने 'वेश्या' बुलाया, और परिवार का किया बहिष्कार

बुजुर्गों को अब भी याद है, जब महज 13 साल की उम्र में धन्नो को फिल्म की शूटिंग के लिए मुंबई रवाना करने मोहल्ले के बच्चे-महिलाएं तक स्टेशन गए थे। सितारा देवी ने निरंजन की पहली फिल्म ‘वसंत सेना’ में नृत्यांगना के तौर पर अभिनय की शुरुआत की। इसके बाद फिल्मों में कोरियोग्राफी के जरिये भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। वहीं कथक नृत्य को दुनिया में विशिष्ट पहचान भी दिलाई।

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जब महराज सुखदेव ने अपनी बेटी धन्नो को कथक सिखाने का फैसला लिया तो समाज ने उनका बहिष्कार किया था। इतना ही नहीं उनकी बेटी धन्नो को लोग प्रॉस्टिट्यूट कहकर भी बुलाने लगे थे। तब पिता सुखदेव ने कहा था, ‘जब राधा कृष्‍ण के लिए डांस कर सकती है तो मेरी बेटी क्यों नहीं।’ बहिष्कार के बाद महाराज जी ने अपना घर बदल दिया था। यहां आकर उन्होंने एक डांसिंग स्कूल शुरू किया जहां वेश्याओं के बच्चों को दाखिला दिया। 

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उनको जानने वाले कहते हैं कि उन्होंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। जब भी मान को ठेस लगी उसका बेबाक जवाब भी दिया। देर से पद्म अलंकरण देने से खफा होकर साल 2003 में उन्होंने पद्मविभूषण को ठुकरा दिया था। नृत्यांगना सितारा ने दो शादियां की थीं। पहली शादी उन्होंने फिल्म मुगले आजम के निर्देशक आसिफ से की लेकिन यह रिश्ता कम समय में ही टूट गया और उन्होंने तलाक ले लिया।

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दूसरी शादी उन्होंने ‘डॉन’ फिल्म के निर्माता कमल बरोट के भाई प्रताप बरोट से की। प्रताप के साथ मुंबई के नेपेंसी रोड इलाके में घर बसाने के बाद उन्होंने एक पुत्र रंजीत बरोट को जन्म दिया। बहू माया और पोती मल्लिका बरोट भी उनके साथ ही रहते थे। उनकी बहनों में सबसे बड़ी अलकनंदा और उनके बाद तारा देवी भी उस दौर की मशहूर नृत्यांगनाओं में शुमार थीं। उनके दोनों भाई दुर्गा प्रसाद मिश्र और चतुर्भुज मिश्र भी नृत्य साधना से जुड़े रहे।
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