एशिया में होने वाले सबसे बड़ी ईसाई महासभा के लिए मशहूर मरामॉन, जरूर देखने जाएं…
यह स्थल केरल का एक बड़ा कस्बा है। यहां आप इतिहास-संस्कृति और देश की साझी विरासत जीता जागता सुंदर नमूना देख सकेंगे। शिल्प को समर्पित यह स्थान एशिया में आयोजित होने वाले सबसे बड़ी क्रिश्चियन असेंबली के लिए भी प्रसिद्ध है।
यदि आप भारत में यात्राएं करने के शौकीन हैं तो यह जगह आपके लिए बहुत ही खास है। अराणमुला से थोड़ी दूर तकरीबन 5 किमी. पर एक जगह है मरामॉन। यह स्थान ईसाई संस्कृति के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहां एशिया की सबसे बड़ी ईसाई महासभा होती है। साल में एक बार आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम फरवरी माह में होता है। यह वही समय होता है जब पंबा नदी का पानी सूख जाता है और नदी की चमकती रेत देश क्या दुनिया भर के ईसाइयों के स्वागत के लिए तैयार हो जाती है।
सूखकर सिमट चुकी नदी के आगोश में सप्ताह भर चलने वाला यह उत्सव होता है। इसमें देश-विदेश से ईसाई धर्म के प्रचारक, विद्वान और दार्शनिक आकर धर्म के विभिन्न पहलुओं पर गंभीर चर्चा करते हैं। यह महासभा मारतोमा इवांजेलिस्टिक एसोसिएशन द्वारा आयोजित की जाती है। इसकी शुरुआत उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध तक जाती है। वह केरल के सीरियन चर्च का सुधारवादी दौर था।
कहा जाता है कि कला से कला निकलती है अर्थात एक कला दूसरी कला के लिए प्रेरणा बनती है ठीक उसी प्रकार इस महासभा ने हिंदू धर्म की महासभा के लिए भी प्रेरणास्त्रोत का काम किया। यहीं पास के चेरुकोलपुषा पंबा नदी के भीतर ही हिंदूमत ‘महामंडलम’ नामक संस्था द्वारा महासभा का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश के कोने-कोने से हिंदू धर्म के विद्वान और मठाधीश आते हैं। रोचक बात यह है कि दोनों ही धर्मो से जुड़ी महासभाएं फरवरी महीने में ही होती हैं। इसके पीछे की मान्यता यह है कि नदी की भूमि पवित्र होती है इसलिए धार्मिक कायरें के लिए उसका उपयोग किया जाना चाहिए।