एनडीए अति आत्मविश्वास को लेकर सतर्क, अमित शाह और जेपी नड्डा ने संभाला मोर्चा

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 6 और 11 नवंबर को होना है। इससे पहले भाजपा-जदयू और अन्य दलों के गठबंधन- NDA को अति आत्मविश्वास से बचाने के लिए खुद अमित शाह और जेपी नड्डा ने मोर्चा संभाला है। दोनों रैली नहीं कर सके तो कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में जुट गए हैं। साथ ही महागठबंधन के नैरेटिव को काउंटर करने की कवायद भी तेज हो गई है। पढ़िए ये रिपोर्ट

बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ रहा है, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की रणनीति में अति आत्मविश्वास को लेकर सतर्कता लगातार बढ़ती जा रही है। लोकसभा चुनाव में चार सौ पार के नारे से बनी ऊंची अपेक्षाओं और उसके संभावित नुकसान को ध्यान में रखते हुए पार्टी इस बार किसी भी तरह की ढिलाई नहीं रखना चाहती। भाजपा-जदयू की रणनीति स्पष्ट है कि कार्यकर्ताओं को शिथिल नहीं होने देना है।

शनिवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पटना में ही थे। मौसम खराब होने से शाह को कई रैलियां स्थगित करनी पड़ी। मगर, इस दौरान भी वह चुनाव प्रभारी बनाए गए धर्मेंद्र प्रधान, राज्य प्रभारी विनोद तावड़े और सह प्रभारी केशव प्रसाद मौर्य के अलावा स्थानीय नेताओं से चर्चा में मशगूल रहे। जरूरी दिशा-निर्देश भी दिए। भाजपा अध्यक्ष नड्डा भी शाह के साथ होटल में जमे थे और क्षेत्रवार सीटों का जायजा लिया। शाह और नड्डा का जोर जमीनी कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने और अति आत्मविश्वास से बचने पर रहा। दरअसल, भाजपा थिंकटैंक का मानना है कि लोकसभा चुनाव में संविधान बदलने के विपक्ष के नैरेटिव का तोड़ समय रहते नहीं किया गया था। इस बार नैरेटिव वॉर को युद्धस्तर पर लिया जा रहा है, जिसमें विपक्षी नैरेटिव का तत्काल प्रतिकार मुख्य बिंदु है।

महिला वोट पर विशेष फोकस

एनडीए ने महिला वोट को निर्णायक मानते हुए इस वर्ग पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। पीएम मोदी 4 नवंबर को महिलाओं से विशेष संवाद करने जा रहे हैं। बीते कई चुनावों में महिला वोटरों ने जदयू–भाजपा को निर्णायक बढ़त दी है, इसलिए इस बार महिला सशक्तीकरण, सुरक्षा और कल्याण योजनाओं को फ्रंट-फुट पर लाकर भरोसा बनाए रखने की कोशिश की जा रही है। उद्यम के नाम पर एक करोड़ महिलाओं के खाते में 10-10 हजार दिए जा जा चुके हैं।

बिहारी अस्मिता, सुशासन व नीतीश के नेतृत्व पर जोर

महागठबंधन ने इस बार दो नैरेटिव को प्रमुखता दी है। पहला, यह कि भाजपा नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनने देगी और दूसरा, बिहार में सब कुछ गुजरात नेतृत्व नियंत्रित कर रहा है। इन नकारात्मक प्रचार को जमीन पर गति मिलती देख एनडीए ने तेजी से नुकसान होने से पहले भरपाई शुरू की। विपक्ष ने संकल्प पत्र कार्यक्रम में नीतीश की चुप्पी को भुनाने की कोशिश की थी। इसके जवाब में शनिवार को करीब चार मिनट का रिकॉर्ड किया हुआ नीतीश का वीडियो संदेश जारी किया गया। इस वीडियो में नीतीश ने अपनी छवि के अनुरूप बिहारी अस्मिता, सुशासन और 2005 के बाद बिहार में आए सकारात्मक बदलावों को रेखांकित किया। यह संदेश स्पष्ट था निर्णय बिहार में ही होता है, और नेतृत्व नीतीश का है।

चिराग फैक्टर से बढ़त, पर करीबी लड़ाई पर नजर

एनडीए का आकलन है कि चिराग पासवान के गठबंधन में आने से पासवान वोट बैंक एक तरफ जाता दिख रहा है। पिछली बार जद(यू) को जो नुकसान चिराग के वोट काटने से हुआ था, वह नहीं होगा। यानी नीतीश की पार्टी की सीटें बढ़ेंगी। एनडीए अपनी बढ़त मान रहा है, लेकिन रणनीतिक स्तर पर पार्टी इसे कड़ा मुकाबला मानकर चल रही है। भीतरखाने संदेश साफ है कि लोकसभा वाली गलती बिहार में बिल्कुल नहीं। इसलिए बूथ-स्तर तक सख्ती से निगरानी जारी है। देखा जाए तो पहले चरण का चुनाव सिर्फ वोटों का नहीं, बल्कि नैरेटिव की निर्णायक लड़ाई है। एनडीए की चुनौती आत्मविश्वास और रणनीतिक सतर्कता के बीच संतुलन साधने की है। वरिष्ठ नेता के शब्दों में न जीत को तय मानेंगे, न विपक्ष को मौका देंगे।

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