एक iPhone को बनाने में कितने देश होते हैं शामिल? किसके हिस्से जाती है कितनी कमाई; जानिए

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर आईफोन की मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका ले जाने की बात कही है। उन्होंने सोशल मीडिया ‘ट्रुथ’ पर लिखा, “मैंने बहुत पहले एपल के (CEO) टिम कुक से कहा था कि अमेरिका में बिकने वाले आईफोन अमेरिका में ही बनने चाहिए, भारत या किसी अन्य देश में नहीं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो एपल को अमेरिका में कम से कम 25% टैरिफ देना पड़ेगा।”

इससे पहले 15 मई को दोहा में एक बिजनेस समिट में भी ट्रंप (Donald Trump) ने यह बात कही थी। सवाल है कि ट्रंप अमेरिका में आईफोन की मैन्युफैक्चरिंग (असेंबलिंग) क्यों ले जाना चाहते हैं? इसे समझने के लिए iPhone के इकोनॉमिक्स को जानना जरूरी है।

एक iphone की मैन्युफैक्चरिंग में कितने देश शामिल?

आईफोन की मैन्युफैक्चरिंग में कम से कम एक दर्जन देश शामिल होते हैं। अगर एक फोन की कीमत 1000 डॉलर मानें तो उसमें सबसे बड़ा, 450 डॉलर का हिस्सा Apple को मिलता है। कंपनी सॉफ्टवेयर, डिजाइन और ब्रांड के नाम पर यह पैसे लेती है। अमेरिका के ही कम्पोनेंट मैन्युफैक्चर क्वालकॉम और ब्रॉडकॉम के हिस्से 80 डॉलर आते हैं। चिप मैन्युफैक्चरिंग के लिए ताइवान को 150 डॉलर मिलते हैं। ओएलईडी स्क्रीन और मेमोरी चिप के लिए दक्षिण कोरिया को 90 डॉलर और कैमरा सिस्टम के लिए जापान को 85 डॉलर की आय होती है। जर्मनी, वियतनाम और मलेशिया जैसे अन्य देश छोटे पार्ट्स का योगदान करते हैं जिनकी वैल्यू लगभग 45 डॉलर होती है।

उसके बाद भारत और चीन आते हैं, जहां आईफोन की असेंबलिंग होती है। दोनों देशों को प्रति डिवाइस लगभग 30 डॉलर की आय होती है, जो आईफोन की रिटेल प्राइस का लगभग तीन प्रतिशत है। आईफोन मैन्युफैक्चरिंग के इस अंतिम चरण की वैल्यू भले ही कम हो, लेकिन इसमें बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है। भारत में करीब 60,000 और चीन में लगभग तीन लाख लोग आईफोन असेंबली लाइन में काम करते हैं।

इस कारण अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग चाहते हैं ट्रंप

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, “अगर आईफोन भारत के बजाय अमेरिका में असेंबलिंग करती है तो वहां तत्काल 60,000 लोगों को नौकरी मिल जाएगी। अगर कंपनी चीन से भी अपनी असेंबली लाइन अमेरिका ले जाती है तो और तीन लाख लोगों को काम मिलेगा। यही कारण है कि ट्रंप अमेरिका में आईफोन की मैन्युफैक्चरिंग चाहते हैं।”

अमेरिका में 13 गुना बढ़ जाएगी असेंबलिंग लागत

वैसे तो यह एंट्री लेवल की मैन्युफैक्चरिंग होगी, लेकिन इसकी लागत बहुत ज्यादा होगी। भारत में असेंबलिंग करने वाले कर्मचारियों को हर महीने औसतन 230 डॉलर मिलते हैं। इसके विपरीत अमेरिका के कैलिफोर्निया जैसे राज्यों में न्यूनतम वेतन 2900 डॉलर है। भारत की तुलना में यह 13 गुना अधिक बैठता है। इस तरह एक आईफोन असेंबलिंग की लागत 30 डॉलर से बढ़कर 390 डॉलर हो जाएगी। अगर एपल फोन के दाम नहीं बढ़ाती है तो प्रति डिवाइस उसका मार्जिन 450 डॉलर से घटकर 60 डॉलर रह जाएगा।

भारत को भी मिलेगा फायदा, जानिए कैसे

श्रीवास्तव ने बताया, “अगर एपल आईफोन की मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका ले जाती है तो अमेरिकी नागरिकों को जॉब तो मिलेगी ही, अमेरिका की इकोनॉमी को भी फायदा होगा। लेकिन आम धारणा के विपरीत भारत को भी इससे लाभ मिलेगा। भारत को प्रति आईफोन 30 डॉलर की आय होती है। इसका बड़ा हिस्सा पीएलआई स्कीम के तहत एपल को सब्सिडी के रूप में चला जाता है। स्मार्टफोन कम्पोनेंट पर आयात शुल्क कम करने से घरेलू स्तर पर कम्पोनेंट इकोसिस्टम डेवलप करने में बाधा आ रही है। अगर एपल की असेंबलिंग बाहर भारत से बाहर जाती है तो भारत भी चिप, डिस्प्ले, बैटरी जैसी डीप मैन्युफैक्चरिंग में निवेश करेगा।

”उन्होंने कहा कि इससे अमेरिका का व्यापार घाटा भी कम होगा, जिस मुद्दे को ट्रंप बार-बार उठाते रहे हैं। आईफोन के हर 1000 डॉलर में भारत का हिस्सा तो सिर्फ 30 डॉलर है, लेकिन जब व्यापार घाटे की बात आती है, तो पूरी वैल्यू को जोड़ा जाता है।

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