एक अकेला पुल जिसका नहीं हुआ आज तक उद्घाटन बम भी नहीं बिगाड़ सका था इसका कुछ

हमारे देश में कई अनोखी चीजें हैं जिसे देखने के लिए विदेशी सैलानी भी आतुर रहते है। कई तो अपना ऐतिहासिक महत्व रखते हैं। ऐसा ही एक हैं कोलकाता का हावड़ा ब्रिज। यह हमेशा से ही कोलकाता की पहचान रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दिसंबर 1942 में जापान का एक बम इस ब्रिज से कुछ दूरी पर ही गिरा था, लेकिन यह ब्रिज तब भी ज्यों का त्यों ही खड़ा रहा, जैसे आज है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस विश्व प्रसिद्ध पुल का आज तक उद्घाटन भी नहीं हुआ है।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों में ब्रिटिश इंडिया सरकार ने कोलकाता और हावड़ा के बीच बहने वाली हुगली नदी पर एक तैरते हुए पुल के निर्माण की योजना बनाई। ऐसा इसलिए क्योंकि उस दौर में हुगली में रोजाना कई जहाज आते-जाते थे। खंभों वाला पुल बनाने से कहीं जहाजों की आवाजाही में रुकावट न आये, इसलिए 1871 में हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया गया। साल 1936 में हावड़ा ब्रिज का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1942 में यह पूरा हो गया। उसके बाद 3 फरवरी, 1943 को इसे जनता के लिए खोल दिया गया। उस समय यह पुल दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था।

साल 1965 में कविगुरु रबींद्र नाथ के नाम पर इसका नाम रवींद्र सेतु रखा गया। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस ब्रिज को बनाने में 26,500 टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें 23,500 टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी। इस पुल की खासियत ये है कि पूरा ब्रिज महज नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे दो पायों पर टिका है। इसके दोनों पायों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फीट है। इन दो पायों के अलावा नदी में कहीं कोई पाया नहीं है, जो ब्रिज को सपोर्ट कर सके।

हावड़ा ब्रिज की एक और खासियत यह है कि इसके निर्माण में स्टील की प्लेटों को जोड़ने के लिए नट-बोल्ट की जगह धातु की बनी कीलों का इस्तेमाल किया गया है। साल 2011 में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें यह बात सामने आई थी कि तंबाकू थूकने की वजह से ब्रिज के पायों की मोटाई कम हो रही है। इसके बाद इस बचाने के लिए स्टील के पायों को नीचे फाइबर ग्लास से ढंक दिया गया। इसमें लगभग 20 लाख रुपये खर्च हुए थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button