इस ‘सीक्रेट वाटरफॉल’ का नजारा देख भूल जाएंगे स्विट्जरलैंड

सर्दी की छुट्टियां शुरू होने से पहले ही बनने लगती है घूमने की योजना। पर एक समस्या जो सबसे पहले आती है वह यह कि इंस्टाग्राम पर फोटोजेनिक नजर आ रहे इन स्थानों पर जाओ तो लोगों की भीड़ सारा मजा किरकिरा कर देती है। सामान्य विकल्प तो हर किसी के दिमाग में आते हैं, मगर इनके अलावा भी कई जगहें हैं जहां घूमने और दिन बिताने का नया अनुभव भी है और भीड़ के नाम पर मिलते हैं कुछ ही लोग।

हाथ भर की दूरी पर उतरता इंद्रधनुष
घूमने जाने की जगह तय करने के लिए कोई मुझसे पूछे तो मेरे दिमाग में सबसे पहले मनाली का जुगनी या जोगिनी वाटरफाल आता है। जहां सपरिवार धीरे-धीरे रुकते-चलते ट्रेक करके आगे बढ़ते हैं। वाटरफाल की फुहार और उसको चीरती हुई सूर्य की किरणें फोटोजेनिक दृश्य देती हैं। जहां इंद्रधनुष देखने के लिए बारिश का इंतजार नहीं करना पड़ता। यहां पूरा का पूरा इंद्रधनुष मात्र देखने को नहीं बल्कि छूने को भी मिल जाता है। अगर आपके परिवार में नई जेनरेशन के बच्चे हैं तो उनके लिए यह दृश्य और अनुभव एकदम एस्थेटिक और इंस्टाफ्रेंडली साबित होगा। ट्रेक के बाद पसीने से लथपथ हो जाएं तो मनाली के पास सलथर एक खूबसूरत और शांत जगह है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ट्रेकिंग ट्रेल्स और स्थानीय संस्कृति के लिए जानी जाती है; यह मनाली के मुख्य शहर से थोड़ी दूरी पर एक शांत अनुभव चाहने वालों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प है, जहां आप पुराने मनाली के कैफे और पारंपरिक माहौल का आनंद ले सकते हैं।

वशिष्ठ आश्रम में पुरुषों और महिलाओं के लिए दो कुंड हैं। जहां स्नान न सिर्फ राहत देता है बल्कि मान्यता है कि यहां स्नान करने पर चर्म संबंधी तकलीफें भी दूर हो जाती हैं। अगर आपको ट्रेकिंग का थोड़ा अनुभव है तो आप भृगु लेक ट्रेक पर जाएं। यह मध्यम-कठिन मार्ग है, जो अपनी खड़ी चढ़ाई और तेजी से बढ़ती ऊंचाई (लगभग 14,100 फीट) के लिए जाना जाता है। यह लगभग 10-12 किलोमीटर का ट्रेक है जो गुलाबा गांव से शुरू होकर रोलाकोली (बेस कैंप) तक जाता है और अपने क्रिस्टल-क्लियर पानी और शानदार हिमालयी दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। यहां अगर आप चांदनी रात को पहुंचे तो इस नहर में आपको कटोरे में चांद उतरा मालूम पड़ेगा। इसके निकट दुधि लेक, प्रियदर्शिनी रेंज, लामादुघ ट्रेक, पांडु रोपा ट्रेक हैं, जहां प्रकृति और रोमांच आंचल पसारे आपका इंतजार करते हैं।

बन सकते हैं स्की मास्टर
रिवर राफ्टिंग के लिए मनाली एक अच्छी जगह है। मनाली जा रहे हैं तो इस बात को ध्यान में जरूर रखिए कि बर्फबारी हो चुकी है तो यह समय आदर्श है स्नो स्कीइंग करने का। जहां जनवरी-फरवरी (…और मार्च तक) के महीनों में बर्फबारी के साथ यह रोमांचक गतिविधि की जाती है। मनाली से लगभग 14 किलोमीटर दूर सोलंग घाटी सभी स्तरों के ढलानों के साथ एक लोकप्रिय केंद्र है। तो वहीं शुरुआती शौकीनों के लिए गुलाबा अच्छा और शानदार दृश्यों वाला इलाका है। स्कीइंग के साथ ही दिसंबर से फरवरी के बीच स्नोबोर्डिंग, स्नो ट्रेकिंग, जोर्बिंग और पैराग्लाइडिंग जैसे रोमांचक खेल होते हैं। यहां स्कीइंग का अनुभव लेने के साथ ही आप इसका बाकायदा कोर्स भी कर सकते हैं।

आज मैं ऊपर आसमान नीचे
अगर आपको पैराग्लाइडिंग का आनंद लेना है तो कश्मीर को तिब्बत से जोड़ने वाले प्राचीन सिल्क रोड के प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध सोनमर्ग जरूर जाएं। इस पैराग्लाइडिंग में आपको हिंदी सिनेमा की प्रसिद्ध बेताब वैली समेत कई दिलकश नजारे मिल जाएंगे। अगर आप सोनमर्ग तक नहीं पहुंच पाते हैं तो कांगड़ा जिले में स्थित भारत की पैराग्लाइडिंग राजधानी बीड़ बिलिंग जाएं। मंडी के रास्ते आप बीड़ पहुंच सकते हैं। यहां पैराग्लाइडिंग वर्ल्ड कप जैसे बड़े आयोजन भी होते हैं, जो दुनिया भर के पर्यटकों और पायलटों को आकर्षित करते हैं।

दुनिया के सबसे अच्छे पैराग्लाइडिंग स्थलों में से एक यह क्षेत्र मनोरम दृश्य, अनुकूल मौसम और अच्छी थर्मल (गर्म हवा के झोंके) के लिए प्रसिद्ध है, जो पैराग्लाइडिंग के लिए आदर्श है। यह क्षेत्र टेक-आफ के लिए बिलिंग और लैंडिंग के लिए बीड़ के साथ दो हिस्सों में बंटा है। जहां आप लैंड करते हैं, वह स्थान सबसे खूबसूरत सूर्यास्त देखने का भी मौका देता है। यहां आने का एक लाभ यह भी है कि अगर आपके पास समय है तो छुट्टियों के बीच आप प्रशिक्षित पैराग्लाइडर भी बन सकते हैं। मैंने पैराग्लाइडिंग का कोर्स यहीं से किया था, महज 10 दिनों के भीतर आप अपना ग्लाइडर स्वयं उड़ाने में सक्षम हो सकते हैं।

चल कहीं दूर निकल जाएं
हिमाचल प्रदेश के सतलुज घाटी में स्थित बीड़ तत्तापानी ट्रेक प्राकृतिक गर्म पानी के झरने वाला स्थान है, जो गंधकयुक्त पानी और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यहां से शिमला और आगे ट्रेकिंग के रास्ते खुलते हैं। यहां से बैद्यनाथ मंदिर और धर्मशाला भी जा सकते हैं। यहां मौजूद पाटरी क्लब में बच्चों और परिवार के साथ मिट्टी से कलाकृति बनाकर मोमेंटो के तौर पर ले भी जा सकते हैं।

यहां जंगल जिम की सुविधा देने वाले क्लब भी हैं, जो समूह में लोगों को जंगल के अंदर ले जाते हैं और प्रकृति के बीच जिम करवाते हैं। बीड़ में बंजी जंपिंग के लिए भी काफी विकल्प मौजूद हैं। एक तरफ जहां यह क्षेत्र पैराग्लाइडिंग का रोमांच देता है वहीं यहां के बौद्ध मठ शांति का अनुभव करने का अवसर देते हैं। यह ध्यान और आध्यात्मिक अध्ययन के साथ ही इको-टूरिज्म के लिए भी प्रसिद्ध केंद्र है।

बर्फीली नदी का रोमांच
बकेट लिस्ट में एक और अनोखी जगह को शामिल करना चाहते हैं तो लद्दाख की जांस्कर घाटी में किया जाने वाला बेहद चुनौतीपूर्ण और रोमांचक अनुभव है चादर ट्रेक। जहां पर्यटक और स्थानीय लोग जमी हुई जांस्कर नदी पर चलकर एक गांव से दूसरे गांव जाते हैं। यह ट्रेक शून्य से नीचे -20 डिग्री सेल्सियस से -30 डिग्री सेल्सियस के तापमान और बर्फीले नजारों के लिए प्रसिद्ध है, जो लगभग 8-9 दिनों में पूरा होता है। यहां साल में एक ही बार ट्रेक करने का मौका मिलता है। यहां ट्रेक के साथ ही आइस क्लाइंबिंग के लिए भी यह जगह मौका जरूर देती है।

इन सभी गतिविधियों पर जाने से पहले सबसे जरूरी है कि आप अपनी सेहत पर काम करना शुरू करें। क्योंकि यहां आपका मानसिक नियंत्रण और धैर्य सबसे जरूरी होता है। यहां प्रकृति पहले से किसी भी स्थिति का आभास नहीं कराती और कुछ पता नहीं होता कि कब कौन सी स्थिति ऐसी हो जाए कि आप पैनिक कर जाएं। ऑक्सीजन का स्तर तो वैसे ही कम होता है, उस पर आपकी मानसिक स्थिति भी डांवाडोल हो जाए तो राई का पहाड़ बनते देर नहीं लगती!

देखो भूल न जाना
यात्रा से कम से कम 2-4 सप्ताह पहले तैयारी शुरू करें। रोज 3-5 किलोमीटर पैदल चलें। संभव हो, तो सीढ़ियां चढ़ने का अभ्यास करें, क्योंकि पहाड़ों पर आपको चढ़ाई करनी होगी।
साइकिलिंग, स्लो रनिंग या तैराकी करें। इससे फेफड़ों की क्षमता बढ़ेगी और शरीर को कम आक्सीजन में काम करने की आदत पड़ेगी।
कम से कम 3-4 लीटर पानी रोज पिएं। नारियल पानी या जूस भी अच्छा विकल्प हैं। आयरन युक्त भोजन (पालक, गुड़, खजूर) लें, क्योंकि यह खून में आक्सीजन ले जाने की क्षमता बढ़ाते हैं।
ट्रेक के दौरान एक भारी जैकेट के बजाय पतली-पतली 3-4 परतें पहनें। इससे शरीर की गर्मी बनी रहती है।
स्पोर्ट्स शूज या अच्छी ग्रिप वाले ट्रेकिंग जूते पहनें। नए जूतों को यात्रा से 2-3 दिन पहले पहनकर ‘ब्रेक-इन’ कर लें ताकि छाले न पड़ें।
सनग्लासेस और सनस्क्रीन जरूर रखें, क्योंकि पहाड़ों पर यूवी किरणें त्वचा और आंखों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

पूजनीय हैं पहाड़
पहाड़ सिर्फ घूमने-फिरने और पिकनिक मनाने की जगह नहीं है। ये पूजनीय होने के साथ ही पर्यावरण के लिहाज से भी जरूरी हैं, तो जब पहाड़ आपको खुशी दे रहे हैं तो वहां से लौटते वक्त उन्हें गंदगी या कचरे का दुख न देकर आएं। ध्यान रखें कि वहां कोई कचरे वाली गाड़ी या सफाईकर्मी नहीं है जो आपके जाने के बाद सफाई करेगा। यह आपकी सिविक सेंस है, जिसे पहाड़ों पर जाकर भूलें नहीं। पहाड़ों से ही हमारी नदियां निकलती हैं। वहां फैलाया गया कचरा अंततः हमारे पीने के पानी को प्रदूषित करता है। पहाड़ों को केवल ‘पिकनिक स्पॉट’ न समझें। वहां रहने वाले लोगों और उनकी परंपराओं का सम्मान करें।

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