वित्त मंत्री अरूण जेटली ने 25 जून 1975 में इंदिरा गांधी के शासन काल में लागू किए गए आपातकाल को याद करते हुए छह पन्नों का एक लेख लिखा है। इमरजेंसी रिविजेटेड पार्ट टू में वित्त मंत्री ने इसे द टयरानी ऑफ इमरजेंसी (आपातकाल का अत्याचार) का नाम दिया है।
इंदिरा के आपातकाल की तुलना उन्होंने जर्मनी के क्रूर तानाशाह हिटलर से करते हुए लिखा है कि दोनों ने लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने के लिए संविधान का उपयोग किया। उन्होंने अपने छह पन्नों के खत में लिखा है कि इंदिरा गांधी ने मूलभूत अधिकारों का हनन करते हुए आपातकाल लागू किया था। 26 जून 1975 को इंदिरा ने आर्टिकल 359 के अंतर्गत जनता के अधिकारों को आपातकाल की आड़ में दबा दिया था।
देश में उस दौरान डर और खौफ का माहौल था। विपक्षी पार्टियों के नेता इंदिरा के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे विरोध प्रदशर्न धरना प्रदर्शन चल रहा था। उन्होंने लिखा कि वह खुद एक हफ्ते के लिए जेल में बंद किए गए थे।
इंदिरा हिटलर से दो कदम आगे थीं
वह आगे लिखते हैं कि हिटलर ने अपनी दमनकारी नीतियों का उपयोग करते हुए विपक्ष के संसद सदस्यों को गिरफ्तार कराया था और अपनी अल्पमत की सरकार को संसद में दो तिहाई बहुमत वाली सरकार में परिवर्तित कर दिया था।
उसी अंदाज में इंदिरा ने भी संसद के ज्यादातर विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करवा लिया था और उनकी अनुपस्थिति में दो तिहाई बहुमत साबित कर संविधान में कई सारे संशोधन करवाए। 42वां संशोधन के जरिए हाई कोर्ट का रिट पिटीशन जारी करने के अधिकार को कम कर दिया गया। जो कि डॉ भीमराव आंबेडकर के संविधान का एक अहम बिंदू था। इसके अलावा इंदिरा ने आर्टिकल 368 में भी बदलाव किया था ताकि संविधान में किए गए बदलाव न्यायिक जांच में न आ पाए।
खत में कई जगह जेटली ने इंदिरा पर तंज कसा है। उन्होंने लिखा कि इंदिरा हिटलर से दो कदम आगे थीं। उन्होंने कुछ ऐसी भी चीजें कर डालीं जो हिटलर ने भी नहीं की थीं।
वह इंदिरा ही थीं जिन्होंने संसदीय कार्यवाही की मीडिया में प्रकाशन पर भी रोक लगा दी। इंदिरा ने संविधान और लोकप्रतिनिधित्व ऐक्ट तक में बदलाव कर डाला। संशोधन के जरिए प्रधानमंत्री के चुनाव को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। लोक प्रतिनिधित्व कानून को रेट्रस्पेक्टिव (पूर्वप्रभावी) तरीके से संशोधित कर दिया गया ताकि इंदिरा के गैरकानूनी चुनाव को इस कानून के तहत सही ठहराया जा सके। हिटलर से कई कदम आगे जाकर इंदिरा ने भारत को ‘वंशवादी लोकतंत्र’ में बदल दिया।
अरुण जेटली ने इस खत में संजय गांधी पर भी सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि जो आदमी तानाशाही और राजनीति के अंतर नहीं समझ पाया। उसने गरीबों पर जुल्म ढाए, नसबंदी कराई। उनके अंग्रेजी में लिखे पत्र में दो पंक्तियां हिंदी में लिखी हैं- ‘दाद देता हूं मैं मर्द-ए-हिंदुस्तान की, सर कटा सकते हैं लेकिन नस कटा सकते नहीं। ‘
25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक जारी रहा. उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी।