आगरा: आलू की फसल के लिए ये 30 से 45 दिन का समय अहम, आकार बढ़ाने में करता है मदद

आलू की फसल में कंद बनने की अवस्था सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। कृषि विज्ञान केंद्र बिचपुरी के उद्यान विशेषज्ञ अनुपम दुबे के अनुसार, आलू बोने के लगभग 30 से 45 दिन बाद का समय कंद विकास के लिए निर्णायक होता है। इस दौरान यदि पत्तियों पर सूक्ष्म पोषक तत्वों का संतुलित छिड़काव किया जाए तो कंद का आकार, वजन और गुणवत्ता बेहतर की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि इस अवस्था में पोटाश की आवश्यकता अधिक होती है। इसके लिए 13:0:45 (पोटाश) का एक प्रतिशत घोल तैयार कर पत्तियों पर छिड़काव करना लाभकारी रहता है। इसके लिए दस ग्राम उर्वरक प्रति लीटर पानी या 15 लीटर की टंकी में लगभग 150 ग्राम पोटाश मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। पोटाश छिड़काव के दस से 12 दिन बाद या साथ में सूक्ष्म तत्वों के रूप में बोरॉन और मैग्नीशियम का प्रयोग भी उपयोगी होता है।
बोरॉन का 0.2 प्रतिशत घोल यानी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी तथा मैग्नीशियम सल्फेट का एक प्रतिशत घोल यानी 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से कंद का समुचित विकास होता है। 15 लीटर की टंकी के लिए लगभग 30 ग्राम बोरॉन और 150 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट पर्याप्त रहता है। वहीं, दुबे ने बताया कि छिड़काव मौसम खुलने पर सुबह या शाम के समय करना अधिक प्रभावी रहता है। इन सूक्ष्म पोषक तत्वों के संतुलित प्रयोग से आलू के कंद आकार में बड़े, वजन में भारी और गुणवत्ता में बेहतर बनते हैं, जिससे किसानों को बेहतर उपज और अधिक लाभ मिल सकता है।





