असम में भी भाषा को लेकर लड़ाई शुरू

महाराष्ट्र में चल रहे भाषा विवाद के बीच असम में भी भाषा को लेकर लड़ाई शुरू हो गई है। ऑल बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल माइनारिटी के छात्र यूनियन के नेता मैनुद्दीन अली द्वारा असम में जनगणना के दौरान मुस्लिमों से असमिया की जगह पर बंगाली भाषा को अपनी मातृ भाषा लिखने की अपील की गई।
हिमंत बिस्वा सरमा ने बंगाली भाषा को लेकर कही ये बात
छात्र नेता की इस अपील के बाद मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गुरुवार को कहा कि जनगणना दस्तावेजों में बंगाली को मातृभाषा के रूप में लिखने से राज्य में रहने वाले विदेशियों की संख्या का पता चल सकेगा।
असमिया असम की स्थायी आधिकारिक भाषा है
मुख्यमंत्री ने असमिया भाषा को असम की स्थायी राज भाषा बताते हुए कहा कि किसी को भी भाषा का इस्तेमाल ब्लैकमेलिंग के औजार के रूप में नहीं करना चाहिए। भाषा विवाद के मुद्दे पर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि असमिया असम की स्थायी आधिकारिक भाषा है। इसकी संवैधानिक वैधता है। भाषा को ब्लैकमेल करने के हथियार के रूप में नहीं लिया जा सकता।
आगे बोले कि अगर वे असमिया को अपनी मातृभाषा के रूप में सूचीबद्ध नहीं भी करते हैं, तो भी इससे तथ्य नहीं बदलेंगे। हालांकि अगर समुदाय असमिया को अपनी मातृभाषा के रूप में सूचीबद्ध नहीं करता है तो इससे केवल यह पता चलेगा कि राज्य में कितने अवैध विदेशी हैं।
छात्र नेता के इस विवादित बयान के बाद ऑल बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल माइनारिटी ने उसे पार्टी से निलंबित कर दिया है। इसके साथ ही छात्र नेता ने अपने इस बयान के लिए माफी भी मांग ली है।
चार साल में 25 हजार एकड़ जमीन अतिक्रमण से मुक्त
वहीं, असम में बेदखली अभियान जारी रहने का दावा करते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि पिछले चार वर्षों में राज्य भर में 25 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है।
हालांकि, कांग्रेस ने बेदखली अभियानों की आलोचना की और वादा किया कि भाजपा शासन के दौरान जमीन से बेदखल किए गए सभी भारतीय नागरिकों को राज्य में विपक्षी दल सत्ता में आता है, तो उन्हें उचित मुआवजा दिया जाएगा।