अश्वत्थामा के लिए अमरता क्यों बन गई एक श्राप

महाभारत ग्रथ श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को एक ऐसा श्राप दिया जिससे अमरता उसके लिए एक श्राप बन गई। चलिए जानते हैं इसके बारे में।
महाभारत ग्रंथ में ऐसी कई रोचक प्रसंग मिलते हैं, जो आपको हैरान कर सकते हैं। आज हम आपको अश्वत्थामा से जुड़े उस प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं। अश्वत्थामा भी महाभारत का एक पात्र रहा है, जो गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने एक ऐसा अपराध किया, जिसकी सजा उसे आज भी भुगतनी पड़ रही है। चलिए पढ़ते हैं यह कथा।
पांडवों ने चली ये चाल
अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य भी एक बलशाली योद्धा थे, जिनके रहते युद्ध जीतना काफी कठिन था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने एक योजना बनाई। युद्ध में भीम ने अश्वत्थामा नाम के एक हाथी की हत्या कर दी और जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि अश्वत्थामा मारा गया। इस बात की पुष्टि करने के लिए द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा क्या यह सच है।
तब युधिष्ठिर कहता है कि अश्वत्थामा मारा गया। द्रोणाचार्य को लगता है कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया और वह दुखी होकर नीचे बैठकर विलाप करने लगते हैं। इस मौके का फायदा उठाकर धृष्टद्युम्न अपनी तलवार से गुरु द्रोण का सिर धड़ से अलग कर देता है।
इस तरह लिया बदला
जब इस बात का पता अश्वत्थामा को चला, तो वह बहुत क्रोधित हो गया और उसने पांडवों से बदला लेने की ठानी। उसने रात में सोते हुए पांडवों के पांच पुत्रों की हत्या कर दी थी। इसी के साथ उसने पांडवों के वंश को समाप्त करने के लिए उत्तरा के गर्भस्थ शिशु (परीक्षित) को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की।
मिला था ये श्राप
भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के इस जघन्य अपराध के लिए उसे दंड दिया और उसके माथे पर लगी दिव्य मणि निकाल ली। साथ ही उसे श्राप दिया कि वह 3000 वर्षों तक पृथ्वी पर अकेले भटकता रहेगा और उसके माथे का घाव कभी नहीं भरेगा। भयानक कष्ट और पीड़ा के कारण अश्वथामा के लिए यह अमरता एक श्राप के समान ही थी। कहा जाता है कि इस श्राप के चलते अश्वथामा युगों-युगों से भटक रहा है।





