अलाउद्दीन खिलजी की बेटी करती थी इस राजपू से मोहब्बत, ऐसा हुआ था अंज़ाम

एक दिसम्बर को रिलीज होने वाली ऐतिहासिक फिल्म पद्मावती के विवाद ने वर्तमान समय में खूब हंगामा मचा रखा है। हर तरफ यही चर्चा है कि फिल्म रिलीज होनी चाहिए या नही.. पद्मावती वास्तव में इतिहास का हिस्सा थी या कोई काल्पनिक पात्र इस पर खूब बहस हो रही है। पर पद्‍मावती विवाद के बीच एक ऐसी कहानी भी सामने आई  है जिसके बारे बहुत ही कम लोगों को पता होगा। दरअसल कहा जा रहा है कि राजस्थान में ही एक ऐसा योद्धा भी हुआ था जिस पर अलाउद्दीन खिलजी की बेटी मर मिटी थी लेकिन इसका जो अंजाम हुआ था वो बेहद ही खौफनाक था । आज भी राजस्थान में इसके किससे सुनाए जाते हैं और आज हम आपको इसी वाक्ये से रूबरूं कराने जा रहे हैं।

वीरमदेव के एकतरफा प्यार में दिवानी थी अलाउद्दीन खिलजी की शहजादी

दरअसल कहानी कुछ ऐसी है कि राजस्थान के जालौर में एक वीर राजपूत था ..राजकुमार वीरमदेव । वीरमदेव को कुश्ती में महारत हासिल थी और उसकी वीरता के चर्चें दूर दूर तक थे.. जालौर के सोनगरा चौहान शासक कान्हड़ देव का पुत्र वीरमदेव उस समय दिल्ली दरबार में रहता था और जब वह यहां रहता था तो दिल्ली के तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी  की शहजादी फीरोज को वीरम से प्यार से एक तरफा प्यार हो गया। फिर शहजादी ने उसे किसी भी कीमत पर पाने की ठान ली .. और कहा , ‘वर वरूं वीरमदेव ना तो रहूंगी अकन कुंवारी’ यानि मै निकाह करूंगी तो वीरमदेव से नहीं तो जीवन भर कुंवारी रहूंगी। बेटी की जिद और राजनीतिक लाभ पाने के लिए बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी ने भी वीरमदेव के पास शादी का प्रस्ताव भेज दिया पर वीरम ने इस प्रस्ताव को तुरंत ठुकरा दिया। वीरम ने कहा..

‘मामो लाजे भाटियां, कुल लाजे चौहान,

जे मैं परणु तुरकणी, तो पश्चिम उगे भान…।”

यानि अगर मैं तुरकणी से शादी करूं तो मेरे मामा (भाटी) का कुल और स्वयं का चौहान कुल लज्जित हो जाएंगे और ऐसा

तभी हो सकता है जब सूरज पश्चिम से उगे।

जब वीरम का कटा मस्तक पहुंचा फिरोजा के सामने

 अलाउद्दीन खिलजी की बेटी करती थी इस राजपू से मोहब्बत, ऐसा हुआ था अंज़ामवीरम के मना करने पर नाराज होकर अलाउद्दीन खिलजी ने युद्ध का ऐलान कर दिया। लोग कहते हैं कि एक वर्ष तक तुर्कों की सेना जालौर पर घेरा डालकर बैठी रही फिर युद्ध हुआ और किले की हजारों राजपूतानियों ने जौहर किया। साथ ही इस युद्ध में खुद वीरमदेव ने 22 वर्ष की अल्पायु में ही वीरगति पाई।

युद्ध की समाप्ति पर तुर्की की सेना वीरमदेव का मस्तक दिल्ली ले गई और शहजादी के सामने एक स्वर्ण थाल में वीरम का मस्तक रख दिया जिसे देखकर शाहजादी फिरोजा को बेहद दुख हुआ और उसने खुद ही उस मस्तक का अग्नि संस्कार किया। बाद में दुखी होकर शहजादी ने यमुना नदी में कूदकर अपनी जान दे दी। ऐसी भी कहा जाता है कि जैसे ही फिरोजा सामने आई तो थाल में पड़े वीरमदेव के मस्तक ने मुंह फेर लिया।

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