अलग सचिवालय और वित्तीय आजादी का रास्ता साफ, विधानसभा होगी ज्यादा ताकतवर

1993 में गठन के बाद से दिल्ली विधानसभा बिना अपने सचिवालय और वित्तीय स्वतंत्रता के काम कर रही है। दिल्ली विधानसभा सरकारी विभागों से आए अधिकारियों पर निर्भर है। इससे कामकाज में रुकावटें और स्वतंत्रता की कमी महसूस होती है।
दिल्ली विधानसभा की नियम समिति ने स्वतंत्र सचिवालय और वित्तीय आजादी देने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। यह फैसला विधानसभा को ज्यादा स्वायत्त और कुशल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। सोमवार को समिति की बैठक में विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने इस प्रस्ताव को रखा, जिसे सर्वसम्मति से मंजूर किया गया। समिति अपनी रिपोर्ट मानसून सत्र में पेश करेगी।
1993 में गठन के बाद से दिल्ली विधानसभा बिना अपने सचिवालय और वित्तीय स्वतंत्रता के काम कर रही है। दिल्ली विधानसभा सरकारी विभागों से आए अधिकारियों पर निर्भर है। इससे कामकाज में रुकावटें और स्वतंत्रता की कमी महसूस होती है। इस कमी को दूर करने के लिए नियम समिति ने संविधान के अनुच्छेद 98 और 187 के तहत अलग सचिवालय और वित्तीय स्वायत्तता का प्रस्ताव तैयार किया है।
शिमला सम्मेलन से मिला प्रस्ताव को बल
इस प्रस्ताव को बल 2021 में शिमला में हुए 82वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन से मिला। इस सम्मेलन में सभी विधानसभाओं को संसद की तरह वित्तीय स्वतंत्रता देने का संकल्प लिया गया था। लोकसभा महासचिव ने 31 दिसंबर 2021 को दिल्ली के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर इस पर अमल करने को कहा था।
अन्य राज्य विधानसभाओं की तरह मिलेगी स्वायत्तता
दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर तीन केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभाएं हैं, लेकिन दिल्ली की विधानसभा ही संवैधानिक संस्था है। फिर भी, एनसीटी दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 में अलग सचिवालय का प्रावधान नहीं है। समिति अब इस अधिनियम में संशोधन की सिफारिश कर सकती है, ताकि दिल्ली विधानसभा को जम्मू-कश्मीर और अन्य राज्य विधानसभाओं की तरह स्वायत्तता मिले।
स्पीकर के नेतृत्व में समिति का फैसला
इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए समिति में अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता के साथ उपाध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट, अशोक गोयल, शिखा रॉय, संदीप सहरावत, उमंग बजाज, जरनैल सिंह, प्रवेश रत्न और वीरेन्द्र सिंह कादियान ने मिलकर काम किया। यह कदम दिल्ली विधानसभा की गरिमा और कार्यक्षमता को बढ़ाएगा। यह बदलाव न सिर्फ विधानसभा को स्वतंत्र बनाएगा, बल्कि शक्तियों के बंटवारे के संवैधानिक सिद्धांत को भी मजबूत करेगा। यह दिल्ली की विधायी व्यवस्था को नई दिशा देगा और इसे और प्रभावी बनाएगा।