अर्थशास्त्रियों ने क्यों दिया कोर महंगाई बास्केट से सोने को बाहर रखने का सुझाव

दो साल में खुदरा महंगाई दर घटकर लगभग एक-तिहाई रह गई है। यह अप्रैल 2023 में 7.4 प्रतिशत थी, जबकि मई 2025 में खुदरा महंगाई 2.8 प्रतिशत दर्ज हुई। यह खाद्य महंगाई में गिरावट का असर है। लेकिन कोर महंगाई बढ़ रही है। खाद्य सामग्री और ईंधन को छोड़ बाकी चीजों की महंगाई को कोर महंगाई कहते हैं। यह चार महीने से लगातार 4 प्रतिशत से अधिक रही है। इसमें लगातार वृद्धि खुदरा महंगाई को भी बढ़ा सकती है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपने नए विश्लेषण में बताया है कि मई 2024 से मई 2025 के दौरान कोर खुदरा महंगाई 111 आधार अंक बढ़कर 4.2% हो गई। ज्यादातर सब-कैटेगरी में महंगाई दर कम हुई, लेकिन 5 कैटेगरी में वृद्धि हुई है। ये हैं- मोबाइल टैरिफ, ट्रैवल एवं ट्रांसपोर्ट, टॉयलेटरीज, चांदी और सोना। इन पांचों में सबसे अधिक तेजी से सोना महंगा हुआ है। वैश्विक अनिश्चितता बढ़ने के कारण दुनिया भर में सोने की निवेश मांग बढ़ी, जिससे इसकी कीमतों में वृद्धि हुई।
कोर महंगाई को कैसे बढ़ा रहा है सोना
कोर इन्फ्लेशन इंडेक्स में सोने का वेटेज 2.3 प्रतिशत होने के बावजूद मई 2025 तक 12 महीने की अवधि में कोर इन्फ्लेशन बढ़ाने में इसने 17 प्रतिशत योगदान किया। वित्त वर्ष 2024-25 में सोने की महंगाई दर 24.7 प्रतिशत पर पहुंच गई जबकि अन्य कैटेगरी में महंगाई दर सिर्फ 2.4% रही।
इस आधार पर क्रिसिल के अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि जिस तरह कोर महंगाई में खाद्य और ईंधन को शामिल नहीं किया जाता, उसी तरह सोने को भी इससे बाहर रखा जाना चाहिए। तभी कीमतों पर घरेलू मांग का असली असर दिखेगा। वैश्विक स्तर पर आर्थिक अनिश्चितता के दौरान सोने के दाम बढ़ जाते हैं। इस बार भी वैसा ही हुआ है।
ज्वैलरी की डिमांड घटी, फिर भी महंगा हो रहा सोना
आमतौर पर भारतीय परिवारों में ज्वैलरी की डिमांड अधिक रहती है, लेकिन हाल के समय में सोना महंगा होने की वजह इसकी निवेश मांग में वृद्धि है। यह डिमांड दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (Gold ETF) और बार तथा सिक्के के रूप में है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) के आंकड़ों के मुताबिक 2024 में सोने की निवेश मांग 25 प्रतिशत बढ़ गई, जिसका असर इसकी कीमतों पर दिखा। जनवरी-मार्च 2025 तिमाही में तो निवेश मांग 170 प्रतिशत बढ़ी है। ज्वैलरी के लिए सोने की वैश्विक मांग 2024 में 9 प्रतिशत घटी। जनवरी-मार्च 2025 तिमाही में भी इसमें 19 प्रतिशत की गिरावट आई है।
कोर महंगाई में सोना शामिल न करने के दो कारण
खासकर वैश्विक अनिश्चितता के समय कोर महंगाई में सोने को शामिल न करने के दो कारण बताए गए हैं। पहला तो यह कि ज्वैलरी की डिमांड की वजह से नहीं बल्कि वैश्विक निवेश मांग के कारण सोना महंगा हो रहा है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक जनवरी-मार्च 2025 में सोने की निवेश मांग 170 प्रतिशत बढ़कर 551 टन पहुंच गई। मार्च 2024 तिमाही में यह सिर्फ 204.4 टन थी। इस निवेश मांग ने कीमतों को बढ़ाया है। ज्वैलरी के लिए सोने की मांग 2023 में 2,191 टन थी जो 2024 में घटकर 2004 टन रह गई। लेकिन निवेश की मांग 946 टन से बढ़कर 1180 टन हो गई। टेक्नोलॉजी में सोने का इस्तेमाल 305 टन से बढ़कर 326 टन हुआ है।
दूसरा कारण है इन्फ्लेशन वोलैटिलिटी, यानी कीमतों में उतार-चढ़ाव। कीमतों में अधिक उतार-चढ़ाव के कारण ही खाद्य और ईंधन को कोर महंगाई में शामिल नहीं किया जाता है। लेकिन क्रिसिल का आकलन बताता है कि पिछले एक दशक में सोने की कीमतों में वोलैटिलिटी खाद्य और महंगाई से अधिक रही है। वित्त वर्ष 2015-16 से 2024 25 के दौरान सोने की इन्फ्लेशन वोलैटिलिटी 12 रही। इस दौरान ईंधन में वोलैटिलिटी 4.5 और खाद्य में 3.6 रही है।
महंगाई दर में कितना है सोने का वेटेज
दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें तय करने के लिए खुदरा महंगाई पर नजर रखते हैं। साथ ही कोर महंगाई पर भी उनका ध्यान रहता है, क्योंकि इस पर खुदरा महंगाई निर्भर करती है। भारतीय रिजर्व बैंक कई तरीके से कोर महंगाई का आकलन करता है। इसमें दो फार्मूले ऐसे हैं जिनमें सोना और चांदी को शामिल नहीं किया जाता है। एक फार्मूले में खाद्य, ईंधन, पेट्रोल, डीजल, सोना और चांदी शामिल नहीं होते। दूसरे में इन सबके साथ हाउसिंग को भी शामिल नहीं किया जाता है।
जहां तक दूसरे प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों की बात है, तो अमेरिका का फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपीय सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ जापान कोर महंगाई के आकलन में सोने को शामिल करते हैं। वहां सोना ज्वैलरी के रूप में शामिल किया जाता है। लेकिन भारत की तुलना में उन देशों के फार्मूले में सोने का वेटेज बहुत कम है।
कोर महंगाई और बिना-सोना कोर महंगाई के बीच अंतर भी बढ़ा है। 2023-24 में यह अंतर 26 आधार अंक का था, जो 2024-25 में 56 आधार अंक हो गया। मई 2025 में यह अंतर 86 आधार अंक हो गया है। इसलिए क्रिसिल के अर्थशास्त्रियों का आकलन है कि वैश्विक अनिश्चितता के दौरान सोने को कोर महंगाई से बाहर रखना बेहतर होगा।