अयोध्या: तोड़ा जा रहा ऐतिहासिक राम चबूतरा, सामने आया ये बड़ा कारण..
अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भूमि पूजन करने के साथ ही श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण का काम शुरू हो चुका है. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने हाल ही में कहा था कि 70 एकड़ भूमि को ध्यान में रखकर राम मंदिर का नक्शा पास कराया जाएगा और यह बाद में तय होगा कि क्या चीजें कहां पर बनेगी. नए नक्शे के हिसाब से काफी चीज़ों में बदलाव होना है, मसलन पुराने राम चबूतरे को तोड़ा जा रहा है.
अयोध्या में मंदिर निर्माण का काम चालू है और मौजूदा समय में राम चबूतरे को तोड़ा जा रहा है क्योंकि यह चबूतरा राम मंदिर मॉडल के बीचो-बीच आ रहा है.
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि राम चबूतरा ही राम मंदिर आंदोलन का पूरा इतिहास समेटे हुए है और जब भी राम चबूतरे का जिक्र होता है खुद ब खुद राम मंदिर का जिक्र हो जाता है.
अगर राम चबूतरे के इतिहास की बात करें तो विवादित ढांचे की दीवार के बाहरी हिस्से में 21 गुना 17 फुट का एक चबूतरा था जिसे राम चबूतरा कहा जाता था. जहां राम की बाल स्वरूप की एक मूर्ति विराजमान थी और यहां लगभग उतने ही लोग पूजन अर्चन के लिए इकट्ठा होते थे जितना अयोध्या के अन्य प्रतिष्ठित मंदिरों में होते थे.
सुप्रीम कोर्ट में मंदिर-मस्जिद विवाद की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने सबसे पहले इसी राम चबूतरे को रामजन्म स्थान माना था. यही नहीं विश्व हिंदू परिषद ने जब शिलान्यास कार्यक्रम किया था तब इसी चबूतरे के बगल राम मंदिर का शिलान्यास किया था. हालांकि, अब रामचबूतरा एक इतिहास बनने वाला है और आने वाले दिनों में शायद ही किसी को राम चबूतरे के अस्तित्व का पता चलेगा क्योंकि जिस जगह यह राम चबूतरा है उस जगह आने वाले दिनों मे भव्य राम मंदिर दिखाई देगा.
रामजन्मभूमि के पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास के मुताबिक, विश्व हिंदू परिषद ने जिस जगह शिलान्यास किया था उसके पास की जो जमीन थी वहां पर चबूतरा बना था. कारसेवकों के द्वारा बना चबूतरा इतना मजबूत था कि कई दिनों से उसकी तुड़ाई हो रही है लेकिन अभी तक टूट नहीं पाया है. उन्होंने बताया कि यह चबूतरा तोड़ना इसलिए आवश्यक है क्योंकि जो मंदिर का मॉडल है उसी के मध्य में यह आ रहा है इसलिए इसको तोड़ना जरूरी है. पुजारी के मुताबिक, जब तक यह तोड़ा नहीं जाएगा तब तक नक्शे के अनुसार कार्य शुरू नहीं हो पाएगा और बढ़कर आगे मानस भवन भी तोड़ा जाएगा.
और अभी क्या हो रहा है मंदिर स्थान पर?
राम जन्मभूमि परिसर में राम मंदिर के अलावा क्या-क्या होगा? ये सवाल हर किसी के मन में है. अभी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 67 एकड़ भूमि पर निर्माण के लिए मानचित्र पास होने के लिए अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण को भेज दिया है. इसमें लगभग साढ़े 3 एकड़ भूमि पर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण होगा. शेष भूमि में से कुछ भूमि पर लोग राम के जीवन चरित्र को आत्मसात करें इसलिए रामकथा कुंज की स्थापना की जाएगी. जिसमें राम के जन्म से लेकर गुप्त होने तक के जीवन चरित्र को मूर्तियों के माध्यम से दर्शाया जाएगा. इसके अलावा एक नक्षत्र वाटिका होगी जिसमें नक्षत्रों के अनुरूप पेड़ों को लगाया जाएगा.
इसके अलावा शेषावतार का मंदिर, गणेशजी का मंदिर, लक्ष्मण जी का मंदिर समेत चार अन्य मंदिरों का निर्माण किया जाएगा. मंदिर के चार द्वार होंगे जिन्हें गोपुरम कहा जाएगा, साथ ही वैदिको का स्थान शिक्षण अर्जन के लिए, प्रवचन का स्थान भी वहां पर रहेगा. राम के जीवन चरित्र को लोग सुने तो उसका भी व्यापक रूप से विस्तार होगा, साथ ही भगवान राम के जीवन चरित्र पर शोध करने वाले लोगों को भी स्थान मिले, ऐसी व्यवस्था भी की जाएगी.
अंग्रेजों के शासन काल में अयोध्या एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा समिति का गठन करके अयोध्या को पुनः विकसित करने का लक्ष्य बनाया गया था, इसके तहत अयोध्या के 148 उन स्थानों को चिन्हित किया गया था जिनका विकास किया जाना है. इन 148 स्थानों में राम मंदिर भी शामिल था और वहां भी अन्य स्थानों की तरह चिन्हांकन पत्थर लगाया गया था. गर्भ गृह के लिए माइलस्टोन माने जाने वाले दो पत्थरों में 1 यही पत्थर है और दूसरा कसौटी का वह खंभा है जिसे राम मंदिर का माना जाता है और खुदाई के दौरान उसी स्थान से निकला है.
ऐसा नहीं कि राम जन्मभूमि परिसर में राम मंदिर निर्माण तक ही योजना बनाई गई है. इससे इतर अयोध्या को पर्यटन के नक्शे पर प्रमुख स्थान देने के लिए पूरी योजना बनाई गई है. इसके लिए चाहे एयरपोर्ट का निर्माण हो, चाहे सड़कों का चौड़ीकरण हो, या फिर 84 कोसी परिक्रमा मार्ग के भीतर विकास कार्य हो. सभी को लेकर तेजी से काम चल रहा है और अयोध्या को धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी के रूप में विश्व पटल पर स्थापित करने की पुरजोर कोशिश भी चल रही है.