अभी अभी: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, तीन तलाक को खत्म किया!

नई दिल्ली:  तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आज से तीन तलाक को खत्म कर दिया है. चीफ जस्टिस खेहर ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि तीन तलाक पर सरकार 6 महीने के अंदर कानून बनाए और तब तक तीन तलाक पर रोक रहेगी.

अभी अभी: तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, मुस्लिम महिलाओं को…

(जानिए तीन तलाक पर अब तक क्या क्या हुआ)

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को लेकर अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है। कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार संसद में कानून बनाए। उन्होंने कहा कि फिलहाल तीन तलाक जारी रहेगा। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार इस पर कानून बना सकती है।

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1. तीन तलाक के खिलाफ से आवाजें हमेशा उठती रहीं हैं, लेकिन कथित तौर पर धर्म से जुड़ा मसला होने की वजह से किसी राजनीतिक दल या सरकार ने इस पर कभी खुला स्टैंड नहीं लिया। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद 7 अक्टूबर, 2016 को राष्ट्रीय विधि आयोग ने जब इस मसले पर लोगों की राय मांगी तो इस मुद्दे पर देश में एक नई बहस की शुरुआत हुई।

2. दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर खुद संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की। बाद में इससे संबंधित छह अन्य याचिकाएं भी दाखिल हुईं जिनमें से पांच में तीन तलाक को खत्म करने की मांग की गई। तीन तलाक के विरोध और पक्ष में दलीलें रखी गईं। केंद्र सरकार ने तीन तलाक को महिलाओं के साथ भेदभाव बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की।

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3. 30 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि इससे जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ करेगी। अदालत सभी पहलुओं पर विचार करेगी। अदालत ने जोर देकर कहा कि यह मसला बहुत गंभीर है और इसे टाला नहीं जा सकता। कोर्ट ने सभी संबधित पक्षों से लिखित में अपनी बात अटॉर्नी जनरल के पास जमा कराने को कहा।तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट

4. इस केस को समानता की खोज बनाम जमात उलेमा-ए-हिंद नाम दिया गया। रोचक बात यह रही कि केस की सुनवाई करने वाले पांचों जज अलग-अलग समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे एस खेहर सिख समुदाय से हैं, तो जस्टिस कुरियन जोसेफ ईसाई हैं। आर. एफ नरीमन पारसी हैं तो यू.यू. ललित हिंदू और अब्दुल नजीर मुस्लिम समुदाय से हैं।

5. 11 मई 2017 को इस मसले पर संविधान बेंच ने सुनवाई शुरू की। सुनवाई लगातार 6 दिन चली। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच जोरदार बहस देखने को मिली और अदालत की ओर से भी काफी दिलचस्प टिप्पणियां की गईं। कुरान, शरीयत और इस्लामिक कानून के इतिहास पर तगड़ी बहस हुई। साथ ही संविधान के अनुच्छेदों पर विस्तार से दलीलें पेश की गईं।

6. ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दलील दी गई कि तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा नहीं है। कुरआन में तलाक के लिए पूरी प्रक्रिया बताई गई है। पैगंबर की मौत के बाद हनीफी में जो लिखा गया, वह बाद में आया है। उसी में तीन तलाक का जिक्र आया है। कुरआन में तीन तलाक का कहीं भी जिक्र नहीं है। कुरआन इस्लामिक शास्त्र है।

7. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान पर्सनल लॉ को संरक्षित करता है। उन्होंने इसे आस्था का विषय बताते हुए इसकी तुलना भगवान राम के अयोध्या में जन्म से की। उन्होंने कहा कि हिंदुओं में आस्था है कि राम अयोध्या में पैदा हुए हैं। ये आस्था का विषय है। उन्होंने यह भी कहा कि तीन तलाक पाप है और अवांछित है, लेकिन पर्सनल लॉ में कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए।

8. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कपिल सिब्बल से पूछा- क्या यह संभव है कि किसी महिला को निकाह के समय यह अधिकार दिया जाए कि वह तीन तलाक को स्वीकार नहीं करेगी? कोर्ट ने पूछा कि क्या AIMPLB सभी काजियों को निर्देश जारी कर सकता है कि वे निकाहनामा में तीन तलाक पर महिला की मर्जी को भी शामिल करें। कोर्ट ने कहा था कि भले ही इस्लाम की विभिन्न विचारधाराओं में तीन तलाक को ‘वैध’ बताया गया हो, लेकिन यह शादी खत्म करने का सबसे घटिया और अवांछनीय तरीका है।

9. 6 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 18 मई को कोर्ट ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया। इसके बाद 22 मई को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दायर किया। बोर्ड ने कहा है कि वह अपनी वेबसाइट, विभिन्न प्रकाशनों और सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स के जरिए लोगों को अडवाइजरी जारी करेगा और तीन तलाक के खिलाफ जागरुक करेगा।

10. आज सुप्रीम कोर्ट इस पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएगा। फैसले से इन सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद है – एक बार में तीन तलाक और निकाह हलाला धर्म के अभिन्न अंग हैं या नहीं? दोनों मुद्दों को महिलाओं के मौलिक अधिकारों से जोड़ा जा सकता है या नहीं और कोर्ट इसे मौलिक अधिकार करार देकर आदेश लागू करवा सकता है या नहीं?

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