अब ये राशिवाले हो जाये सावधान, क्योंकि राहु-केतु की महादशा हैं शनि से भी ज्यादा कष्टकारी
राहु के शुभ होने पर मिलने वाला फल
– कुंडली में राहु की शुभ स्थिति होने पर जातक राजनेता की सहायता से मान-सम्मान और उच्च पद पर आसीन होता है। कुंडली में राहु के शुभ जगह पर होने से व्यक्ति का धर्म की ओर झुका बढ़ता है।
कुंडली में राहु का अशुभ प्रभाव
– कुंडली में राहु का बुरा प्रभाव पड़ने से व्यक्ति के अंदर बुरी आदतें आने लगती है। धर्म के रास्ते को छोड़कर गलत रास्ते पर चलने को विवश हो जाता है। साथ ही मांस-मदिरा का सेवन ज्यादा करने लगता है।
राहु के शत्रु और मित्र ग्रह
बुध, शुक्र और शनि राहु के मित्र होते हैं जबकि सूर्य और चंद्रमा राहु के शत्रु। मंगल और गुरु का राहु से सम संबंध माना जाता है।
कुंडली में राहु की स्थिति
– चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित राहु अशुभ होता है।
– कुंडली में सूर्य, चंद्रमा, मंगल लग्न भाव के स्वामी हैं तो राहु से अशुभ फल प्राप्त होते हैं। राहु इन ग्रहों के शत्रु माने गए है।
– कुंडली में अगर शनि, शुक्र और बुध लग्न भाव के स्वामी हैं तो राहु शुभ फल प्रदान करता है। राहु इन ग्रहों का मित्र है।
राहु के कारण परेशानियां
– पेट संबंधी रोग जैसे गैस की परेशानी, बाल झड़ने लगना, लगातार सिरदर्द का बना रहना आदि। यहां तक कोई बड़ी बीमारी हो सकती है।
राहु के उपाय
भैरव मंदिर में रविवार को तेल का दीपक जलाएं। बजरंग बाण या हनुमान चालीसा का प्रतिदिन पाठ करें। साथ ही हर सोमवार शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। शनिवार के दिन काला कंबल का दान करें।
कुत्ते को रोटी, चिड़िया को दाना और ब्राह्मण को भोजन खिलाएं। लोहे का दान करने से निश्चित रूप से राहु के कष्ट दूर होंगे।
राहु का महादशा और अंतर्दशा
राहु एक राशि से दूसरी राशि में करीब 18 महीने के बाद अपनी राशि बदलते हैं। राहूकाल की महादशा लगभग 18 साल की होती है। वहीं राहू की अंतर्दशा 2 साल और 8 महीने की होती है।
राहु के बीज मंत्र
कुंडली में राहु के प्रभाव को कम करने के लिए राहु के बीज मंत्र ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: का 108 बार जप करना चाहिए।
राहु का रत्न और दिशा
गोमेद को राहु का रत्न माना गया है और राहू की दिशा दक्षिण-पश्चिम मानी गई है।