अब दाल को लेकर आई ये बड़ी खबर, लोगों को कर सकती है परेशान

चालू रबी सीजन में दलहनी फसलों की अच्छी पैदावार के आसार नहीं हैं। बीते खरीफ सीजन में पहले ही दलहन की पैदावार में कमी का अनुमान है। ऐसा होने से दालों की महंगाई उपभोक्ताओं को परेशान कर सकती है। चालू रबी सीजन में शुरुआती धीमी गति के बाद अब गेहूं की बोआई ने रफ्तार पकड़ ली है। लेकिन दलहन और तिलहन वाली फसलों के बोआई रकबा में अब वृद्धि की संभावना नहीं दिख रही है।

खरीफ सीजन के दौरान दलहनी फसलों वाले राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में मानसून की भारी बारिश ने खेत में खड़ी इन फसलों को चौपट कर दिया। इससे दलहन की पैदावार 82.3 लाख टन रह जाने का अनुमान है, जबकि कृषि मंत्रालय ने 1.01 करोड़ टन पैदावार का लक्ष्य निर्धारित किया था। इसी तरह तिलहनी फसलों का घरेलू उत्पादन वैसे भी बहुत कम है, जो इस बार और घट सकता है। इससे तिलहनी फसलों की पैदावार बढ़ाने की सरकार की मंशा को धक्का लगेगा।

चालू रबी सीजन में गेहूं की बोआई देर से शुरू हुई, लेकिन अब बोआई रफ्तार पकड़ चुकी है। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़े के मुताबिक पिछले सप्ताह तक गेहूं बोआई रकबा 1.50 करोड़ हेक्टेयर पहुंच गया है, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले साढ़े नौ लाख हेक्टेयर ज्यादा है। वहीं, राजनीतिक रूप से संवेदनशील मानी जाने वाली दलहनी फसलों की बोआई का रकबा पिछले साल के 99.15 लाख हेक्टेयर के मुकाबले अभी लगभग 10 लाख हेक्टेयर कम है। हालांकि बोआई छिटपुट जारी है।

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सामान्य तौर पर रबी सीजन में कुल दलहनी खेती 1.46 करोड़ हेक्टेयर में होती है।अभी तक चना का बोआई रकबा पिछले साल के 68.40 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 61.59 लाख हेक्टेयर रहा है। सीजन के आखिर तक चने का औसतन कुल रकबा 93.53 लाख हेक्टेयर रहता है। घरेलू दालों में चना दाल की हिस्सेदारी 40 फीसद से ज्यादा रहती है। अन्य दलहनी फसलों में भी बहुत संतोषजनक संकेत नहीं हैं।

सरकार को इसके लिए कारगर रणनीति बनानी होगी, जिससे दालों की घरेलू मांग को पूरा किया जा सके।तिलहनी फसलों का रकबा भी घटता दिख रहा है। दरअसल, मानसून की अच्छी बारिश न होने पर इन दोनों फसलों का रकबा बढ़ जाता है और उत्पादन भी। इस बार भारी बारिश ने पहले खरीफ की खड़ी फसलों को खराब किया और अब रबी में बोआई रकबा के घटने का अनुमान है।

खाद्य तेलों का सस्ता आयात होने से तिलहनी फसलों को लेकर बहुत हायतौबा नहीं मचती है। लेकिन दालों की कमी का खामियाजा उपभोक्ता 2015-16 में भुगत चुके हैं, जब अरहर दाल 200 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई थी।

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