जानें भूलकर से भी अगर गणेश पूजा में कर दिया जाए तुलसी का उपयोग, तो इसका आप पर क्या पड़ेगा असर

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) का बहुत महत्व है। इस बार देवउठनी एकादशी 08 नवंबर यानी आज है। धर्मग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे क्षीरसागर में आकर सो गए और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवी-देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के बाद सभी धार्मिक शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है जैसे शादी, नामकरण, मुंडन, जनेऊ और गृह प्रवेश। इसी के साथ इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप की तुलसी के विवाह किया जाता है। भक्त शालीग्राम भगवान की बारात लेकर आते हैं। मां तुलसी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। लोग धूमधाम से नाच-गाने के साथ दोनों का विवाह कराते हैं। भगवान विष्णु से विवाह और लगभग हर शुभ काम में इस्तेमाल होने वाली तुलसी को लेकर एक कथा बेहद प्रचलित है कि इसे भगवान गणेश की पूजा में इस्तेमाल नहीं किया जाता। तो आइये हम सब मिलकर इस बारें में…
प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार एक धर्मात्मज नाम का राजा हुआ करता था। उसकी एक कन्या थी, जिसका नाम था तुलसी। तुलसी यौन अवस्था में थी। वो अपने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली। कई जगहों की यात्रा के बाद उन्हें गंगा किनारे तप करते हुए गणेश जी दिखे। तप के दौरान भगवान गणेश रत्न से जड़े सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर चंदन लगा हुआ था। गले में उनके स्वर्ण-मणि रत्न पड़े हुए थे और कमर पर रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था। उनके इस रूप को देख माता तुलसी ने गणेश जी से विवाह का मन बना लिया।
उन्होंने गणेश जी की तपस्या भंग कर उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। तपस्या भंग करने पर गुस्साए भगवान गणेश ने विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा कि वह ब्रह्माचारी हैं। इस बात से गुस्साई माता तुलसी ने गणेश जी को श्राप दिया और कहा कि उनके दो विवाह होंगे। इस पर गणेश जी ने भी उन्हें श्राप दिया और कहा कि उनका विवाह एक असुर शंखचूर्ण (जलंधर) से होगा। राक्षक की पत्नी होने का श्राप सुनकर तुलसी जी ने गणेश जी से माफी मांगी।
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तब गणेश ने तुलसी से कहा कि वह भगवान विष्णु और कृष्ण की प्रिय होने के साथ-साथ कलयुग में जगत को जीवन और मोक्ष देने वाली होंगी। लेकिन मेरी पूजा में तुम्हें (तुलसी) चढ़ाना अशुभ माना जाएगा। उसी दिन से भगवान गणेश की पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती।
बता दे, आज देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का महत्व है, देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालीग्राम का विवाह कराया जाता है। इसमें शादी की सारी रस्में निभाई जाती हैं। कहते हैं कि जो कोई भी ये शुभ कार्य करता है, उनके घर में जल्द ही शादी की शहनाई बजती है और पारिवारिक जीवन सुख से बीतता है। इसलिए आज हम आपके लिए तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त बताने जा रहे है।