अंतिम संस्कार का खौफनाक सच! इलेक्ट्रिक चिता में ‘जिंदा’ हो उठती है लाश

अपनों को खोने का दर्द असहनीय होता है लेकिन मृत्यु जीवन का एक कटु सत्य है. मृत्यु के बाद शुरू होती है अंतिम संस्कार की प्रक्रिया, जो हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है. पहले लकड़ी की चिता पर शव को अग्नि दी जाती थी लेकिन अब पर्यावरण संरक्षण और लकड़ी की कमी के कारण इलेक्ट्रिक शवदाह गृह (Electric Crematorium) का उपयोग बढ़ गया है. हालांकि, इस आधुनिक तकनीक से जुड़ी कुछ बातें लोगों को डराती हैं.
कहा जाता है कि इलेक्ट्रिक मशीन में शव जलाने के दौरान शरीर में हलचल होती है और आवाजें निकलती हैं, जिससे ऐसा लगता है मानो लाश ‘जिंदा’ हो रही हो. दरअसल, इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में शव को उच्च तापमान (800-1000 डिग्री सेल्सियस) पर जलाया जाता है. यह प्रक्रिया लकड़ी की चिता से तेज और पर्यावरण के लिए कम हानिकारक मानी जाती है. लेकिन इस दौरान कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जो लोगों में भय पैदा करती हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, जब शव को भट्टी में रखा जाता है, तो गर्मी के कारण शरीर के मांसपेशियों और ऊतकों में संकुचन (contraction) होता है. इससे शरीर में हल्की-फुल्की हलचल या ऐंठन दिखाई दे सकती है, जो देखने में ऐसा लगता है जैसे शव ‘उठकर बैठ रहा हो.’ इसके अलावा, शरीर में मौजूद तरल पदार्थ और गैसें गर्मी के कारण वाष्पित होती हैं, जिससे फटने या सिसकने जैसी आवाजें निकलती हैं. ये आवाजें सुनकर लोग डर जाते हैं और मिथक फैलने लगते हैं कि शव ‘जिंदा’ हो गया.
ऐसी है प्रक्रिया
सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की प्रक्रिया को समझाया गया. लकड़ी की चिता में शव पूरी तरह राख में बदल जाता है, लेकिन इलेक्ट्रिक भट्टी में ऐसा नहीं होता. गर्मी से मांस जल जाता है और केवल हड्डियां बचती हैं, जिन्हें बाद में एक मशीन (Cremulator) में पीसकर पाउडर बनाया जाता है. यह पाउडर ही अस्थि कलश में भरा जाता है, जिसे लोग राख समझते हैं.
क्या है वैज्ञानिक सत्य?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में होने वाली हलचल और आवाजें पूरी तरह प्राकृतिक हैं. मृत्यु के बाद शरीर में कोई चेतना नहीं रहती और ये हलचल केवल गर्मी के कारण मांसपेशियों के संकुचन का परिणाम हैं. न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर शाह के अनुसार, “मृत्यु के बाद शरीर में कोई जीवन नहीं होता, लेकिन गर्मी से रासायनिक और भौतिक परिवर्तन होते हैं, जो ऐसी गलतफहमियां पैदा करते हैं.” फिर भी, यह प्रक्रिया लोगों में डर और अंधविश्वास को बढ़ावा देती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां इसे ‘चमत्कार’ या ‘अलौकिक’ घटना समझा जाता है.