अंतिम दिनों में संघर्षपूर्ण रहा शीला का राजनीतिक सफर, कभी जमीन खो चुकी कांग्रेस को दी थी संजीवनी

दिल्ली में लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित चौथी बार भी मुख्यमंत्री बनतीं, लेकिन केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार में 2जी स्पेक्ट्रम व कोल ब्लॉक घोटालों के चलते दिल्ली की सरकार भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। दिल्ली में जमीन खो चुकी कांग्रेस को बीते लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर पंहुचा कर दिखा दिया कि दिल्ली की जनता का उनके नेतृत्व में अभी भी विश्वास है।

ऐसा नहीं है कि शीला पर भ्रष्टाचार के आरोप न लगे हों, लेकिन आजतक उनके खिलाफ एक भी मामला अदालत की दहलीज तक नहीं पंहुचा। भाजपा हो या आम आदमी पार्टी दोनों ने ही शीला व उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, लेकिन अब तक साबित नहीं कर पाए। राजनीतिज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार में 2जी स्पेक्ट्रम व कोल ब्लॉक सहित अन्य घोटालों के आरोपों का खामियाजा दिल्ली में शीला सरकार को भी उठाना पड़ा। कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए घोटालों के आरोपों को मुद्दा बनाकर आम आदमी पार्टी ने शीला सरकार को सत्ताविहीन कर दिया। दिल्ली में कांग्रेस का एक भी विधायक जीत हासिल नहीं कर पाया।
इसके बाद दिल्ली में कांग्रेस में जमकर गुटबाजी शुरू हो गई और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर त्यागपत्र दे दिया। आखिर पार्टी हाईकमान ने शीला के 80 वर्ष के होने के बावजूद गुटबाजी खत्म करने के लिए उन्हें प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी। शीला ने जब कार्यभार संभाला तो ऐसा लगा कि पूरी दिल्ली उनके साथ खड़ी हो गई और यह उम्मीद भी बंधी कि अब पार्टी में गुटबाजी भी खत्म हो जाएगी। मात्र पांच साल पहले जहां ऐसा लग रहा था कि दिल्ली में अब कांग्रेस खत्म हो गई वहीं बीते लोकसभा चुनाव में शीला ने ऐसा नेतृत्व दिया कि दिल्ली में सात में से पांच सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर पंहुच गई। इतना ही नहीं पार्टी का वोट प्रतिशत भी बढ़ गया।
लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन को देखकर लग रहा था कि कांग्रेस दिल्ली में अपना खोया हुआ जनाधार पुन: हासिल करेगी, लेकिन गुटबाजी अब भी कम नहीं हुई थी। प्रदेश प्रभारी पीसी चाको ही नहीं उनके दो कार्यकारी अध्यक्षों ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इतना ही नहीं कभी शीला के दरबार में हाजिरी लगाने वाले पूर्व विधायकों सहित एआईआईसी के करीब दो दर्जन सदस्यों ने भी राहुल को पत्र लिखकर शीला की शिकायत भी कर दी। यानि यह कहा जाए तो काफी नहीं होगा कि दिल्ली में एक छत्र राज करने वाली शीला का राजनीति सफर अंतिम दिनों में काफी संघर्षपूर्ण रहा।