IIT कानपुर के वैज्ञानिकों की बड़ी कामयाबी, अंतरिक्ष में ब्लैक होल का राज अब आ रहा है सामने

अभी तक रहस्य बना हुए ब्लैक होल का राज भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT ) कानपुर की मुट्ठी में आ रहा है। वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बना सवाल कि आखिर ब्लैक होल की एक्सरे अपनी प्रकृति क्यों बदलती हैं, IIT कानपुर के प्रोफेसरों ने हल कर लिया है। ये संभव हुआ है, भौतिक विभाग के प्रो. जेएस यादव के बनाए एक्सरे डिटेक्टर से। यह डिटेक्टर ब्रह्मांड से ब्लैक होल संबंधी डेटा भेज रहा है। भौतिक विज्ञान विभाग के ही प्रो. पंकज जैन ने डेटा का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला।

 

प्रो. जेएस यादव ने बनाया एक्सरे डिटेक्टर, प्रो. पंकज जैन ने किया अध्ययन

खगोलीय पिंडों को निगलने की क्षमता रखने वाले ब्लैक होल वैज्ञानिकों के लिए यह हमेशा शोध का विषय रहे हैं। कानपुर IIT में इस संबंध में भी शोध चल रहा था। उसी कड़ी में एक्सरे डिटेक्टर बनाया गया। एक्सरे डिटेक्टर से मिले आंकड़ों का अध्ययन करने वाले भौतिक विज्ञान के प्रो. पंकज जैन ने बताया कि ब्लैक होल के आसपास एक डिस्क बनती है, जिससे हमेशा ऊर्जा निकलती है। इस ऊर्जा की तरंगें कभी विरल तो कभी सघन होती हैं। इससे दबाव का स्वभाव बदलता है। तरंगें डिस्क से निकलने वाली एक्सरे पर प्रेशर डालती हैं और दबाव की यही प्रकृति एक्सरे की प्रकृति बदल देती है। एक्सरे डिटेक्टर से मिले डेटा से ऊर्जा उत्सर्जन का समय, उसके अधिकतम व न्यूनतम होने के कालखंड की भी जानकारी मिल रही है।

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इसरो ने एस्ट्रोसेट सेटेलाइट के साथ भेजा था डिटेक्टर

प्रो. जेएस यादव ने विदेशी सेटेलाइट से प्राप्त डेटा के जरिए ब्लैक होल पर अध्ययन किया। इसी आधार पर एक्सरे डिटेक्टर बनाया, जिसे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में विकसित किया गया। इसरो ने इसे एस्ट्रोसेट सेटेलाइट के साथ ब्रह्मांड में भेजा। डिटेक्टर वहां से पल-पल का डेटा रिकार्ड कर भेज रहा है। प्रो. यादव का कहना है कि इससे पहले दुनिया में कोई भी ऐसा सेटेलाइट नहीं था, जो एक्सरे की बदलती प्रकृति के बारे में बता सके। इस डिटेक्टर से ब्रह्मांड के ब्लैक होल, उनकी स्थिति और प्रकृति का भी पता चल जाएगा। प्रोजेक्ट में कानपुर IIT की शोध छात्रा दिव्या रावत और द इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पुणे के प्रो. रंजीव मिश्रा भी शामिल हैं।

अंतरिक्ष यात्रियों को मिलेगा लाभ

अंतरिक्ष यात्रियों को ब्लैक होल की स्थिति के बारे में पूर्व जानकारी मिल सकेगी। खगोलीय पिंडों के ब्लैक होल से टकराने की घटना भी पहले पता चल जाएगी और उसका अध्ययन किया जा सकेगा। 

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