जानें किस वजह से हांगकांग में मचा बवाल और बढ़ गई चीन की मुश्किल…

पिछले करीब 10 हफ्तों से हांगकांग में जारी लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन ने अब हिंसा का रूप ले लिया है. पहले प्रदर्शनकारियों ने संसद का घेराव किया और अब दुनिया के सबसे बड़े एयरपोर्ट में शामिल हांगकांग हवाईअड्डे को भी जाम कर दिया है. हजारों की संख्या में लोग चीन की सरकार के खिलाफ आक्रामक प्रदर्शन कर रहे हैं, जिससे चीनी प्रशासन हिल गया है. चीन के अत्याचारों के खिलाफ हांगकांग काफी लंबे समय से लड़ता आया है, लेकिन हाल ही में आए एक बिल की वजह से ये प्रदर्शन फिर तेज हुआ.

…एक कानून से बढ़ गया बवाल

पिछले दस हफ्तों से हांगकांग में जो प्रदर्शन चल रहा है, उसके पीछे चीनी सरकार का एक कानून है. जिसने एक बार फिर हांगकांग में रह रहे लोकतंत्र समर्थक लोगों को चीन के खिलाफ आवाज़ उठाने का मौका दिया. दरअसल, यहां का प्रशासन एक कानून लेकर आया है जिसके अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति चीन में कोई अपराध करता है तो उसे जांच के लिए प्रत्यर्पित किया जा सकेगा.

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इससे पहले इस बिल में ये प्रावधान नहीं था, पहले ऐसा था कि अगर कोई अपराध करता है तो उसे किसी अन्य देश में प्रत्यर्पित करने की संधि नहीं थी. लेकिन बिल में संशोधन किया गया और कई देशों के साथ संधि की गई. जिनमें चीन, ताइवान, मकाऊ जैसे स्थान शामिल हैं.  

हांगकांग की संसद में चीन का दबदबा

इस बिल को हांगकांग की संसद से आसानी से पास करा लिया गया, क्योंकि वहां चीन समर्थक कई लोग मौजूद हैं. हांगकांग की प्रमुख नेता कैरी लैम की गिनती भी चीन के समर्थकों में होती है, उन्होंने खुद इस कानून का समर्थन किया है. कैरी लैम का मानना है कि समय के साथ कानून में बदलाव होने चाहिए और अपराधी किसी भी कीमत में छूटना नहीं चाहिए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों से मांग भी की है कि एक बार विचार कर इस कानून का समर्थन करना चाहिए.

पुराना है विरोध का इतिहास

करीब 150 साल तक ब्रिटिश उपनिवेश रहा हांगकांग 1997 में चीन का ‘विशेष प्रशासनिक क्षेत्र’ बन गया था. उस वक्त वैश्विक आर्थिक केंद्र बन चुके हांगकांग के लोगों को डर था कि बीजिंग में कम्युनिस्ट पार्टी के संरक्षण में उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ हो सकता है.

पिछले कुछ सालों में कई मुद्दों को लेकर हांगकांग के लोग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे हैं, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (2003), अंब्रेला आंदोलन (2014), किताब विक्रेताओं पर निशाना (2015) शामिल रहे हैं. अब एक बार फिर प्रत्यर्पण बिल की वजह से ये गुस्सा फूट पड़ा.

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