सीट बंटवारे पर भाजपा की ‘पंचायत’ में 2020 वाला रास्ता

6 और 11 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए होने वाले मतदान का परिणाम 14 नवंबर को सामने आ जाएगा। मतलब, अब चुनाव परिणाम आने में भी 36 दिन शेष ही हैं। आमने-सामने की लड़ाई लड़ रहे दोनों गठबंधनों में सीटों पर ही बात बनती नहीं दिख रही है, प्रत्याशियों का नाम तो उसके बाद घोषित होगा। गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी के बिहार प्रदेश कार्यालय में गहमागहमी रही। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के बयानों ने उस गहमागहमी को गरमागरमी जैसा बनाए रखा। लेकिन, अंदर की बात यह है कि एनडीए की सीट शेयरिंग योजना ट्रैक से उतरी नहीं है।

लोकसभा चुनाव में ही भाजपा ने कर ली थी तैयारी
बिहार भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान पटना में हैं। वह घटक दलों के मन की बातें उनके मन से निकालने में कामयाब रहे हैं। मांझी-चिराग के मन की बात भले सामने आई, लेकिन भाजपा को भी पता है कि केंद्रीय मंत्री की कद्दावर कुर्सी छोड़ चिराग पासवान और जीतन राम मांझी बाहर जाने वाले नहीं हैं। उपेंद्र कुशवाहा तो किनारे होकर तमाशा देख रहे हैं। चिराग पासवान की पार्टी के पास मौजूदा विधानसभा में कोई विधायक नहीं। जीतन राम मांझी के पास चार विधायक हैं। उपेंद्र कुशवाहा के पास भी कोई विधायक नहीं। मांझी-चिराग या कुशवाहा को लोकसभा चुनाव के समय भी अंदाजा बता दिया गया था कि बिहार विधानसभा चुनाव के समय सीटों पर कैसे बात होगी। चिराग और मांझी को इसी कारण पसंदीदा, मजबूत और काम लायक मंत्रालय दिए गए थे। रही बात उपेंद्र कुशवाहा की तो, उनके लिए एनडीए के पास कई ऑफर हैं।

बिहार में हुई बात, लेकिन रास्ता तो दिल्ली में निकलेगा
बिहार विधानसभा में 243 सीटें हैं। भाजपा-जदयू अब तक लगभग बराबर 100-100 के गणित पर है। चिराग पावान न्यूनतम 35 और जीतन राम मांझी कम-से-कम 15 सीटें चाह रहे हैं। इस तरह से बच रही है तीन सीटें उपेंद्र कुशवाहा के लिए। जदयू 110-105 की मांग से उतर कर 101-100 पर आकर टिकेगा ही। भाजपा 105 की तैयारी के बीच 100 के लिए भी मन बनाए बैठी है। भाजपा की पटना में बैठकों से कोई अंतिम नतीजा निकलना भी नहीं था। अब फैसला दिल्ली में होना है। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों ने 2020 मॉडल को ही अंतिम उपाय माना है।

क्या है भाजपा का अंतिम रास्ता, जो 2020 में अपनाया था
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग की पार्टी से भाजपा के कई कद्दावर नेता उतरे थे, लेकिन उस समय निशाना जदयू था। इस बार वैसी परिस्थिति नहीं है। सीएम नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के बीच उस समय वाली दूरी अभी नहीं है। भाजपा ने उस समय एनडीए में रही मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी में अपने प्रत्याशी दिए थे। मुकेश सहनी खुद चुनाव नहीं जीत सके थे, इसलिए उनके चार में से तीन विधायक अपनी मूल पार्टी भाजपा में चले गए। एक का निधन हो गया था।

मौजूदा परिस्थिति में जदयू-भाजपा अपने खाते में 100-100 सीटों को रखती है तो जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा-सेक्युलर को जीतने वाली 8 सीटों के साथ मजबूत स्थिति वाली दो-तीन सीटें देगी। उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मोर्चा को पांच-आठ सीटों के बीच फाइनल किया जाएगा। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 22-25 सीटें देने की बात अंतिम तौर पर चल रही है। जब यह सब फाइनल होने लगेगा तो इन दलों से अपने कुछ मजबूत प्रत्याशी भी शिफ्ट करने की बात होगी। देखना यही है कि इस बात पर चिराग कितना राजी होते हैं।मांझी या कुशवाहा के लिए भाजपा की पंचायत का यह रास्ता फायदेमंद ही होगा, क्योंकि ऐसे प्रत्याशियों के पास भाजपा का कैडर भी होगा।

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