सदी के अंत तक 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है वैश्विक तापमान

संयुक्त राष्ट्र की नई एमिशन गैप रिपोर्ट 2025 ने पेरिस जलवायु समझौते की सबसे बड़ी आकांक्षा डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ोतरी सीमित रखने को लगभग असंभव करार दिया है। रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा जलवायु वादों (एनडीसी) के पूरे अमल के बावजूद इस सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 2.3 से 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। जबकि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए दुनिया को अब भी 55 प्रतिशत उत्सर्जन कटौती की जरूरत है, मगर मौजूदा नीतियों से महज 15 प्रतिशत कमी ही संभव है। पेरिस समझौते के दस वर्ष बाद भी धरती अब भी खतरनाक रास्ते पर है।

यूएनईपी की रिपोर्ट बताती है कि अगर सभी देश अपने वादों पर खरे भी उतर जाएं, तो यह सुधार बेहद मामूली होगा। मौजूदा नीतियों के अनुसार तापमान में वृद्धि 2.8 डिग्री सेल्सियस तक जा सकती है, जिससे समुद्र-स्तर में वृद्धि, भीषण गर्मी, सूखा और बाढ़ जैसी आपदाएं आम हो जाएंगी। इसलिए उत्सर्जन में तेजी से गिरावट अत्यंत आवश्यक है। रिपोर्ट के अनुसार 2024 में वैश्विक उत्सर्जन 2.3 प्रतिशत बढ़कर 57.7 गीगाटन सीओ-2 तक पहुंच गया है। यदि दुनिया 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर रहना चाहती है तो 2030 तक उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की कमी जरूरी है। और यदि 1.5 डिग्री का लक्ष्य बचाना है तो अगले पांच वर्षों में 40 प्रतिशत तक कटौती करनी होगी। लेकिन अब तक के वादों से यह कमी 15 प्रतिशत से आगे बढ़ती नहीं दिख रही।

रफ्तार बढ़ाने का वक्त: गुटेरस
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा वैज्ञानिकों के अनुसार डेढ़ डिग्री की सीमा अब अस्थाई रूप से पार होना तय है, शायद अगले कुछ वर्षों में लेकिन यह हार मानने का वक्त नहीं है बल्कि रफ्तार बढ़ाने का वक्त है। उन्होंने कहा कि सदी के अंत तक डेढ़ डिग्री के लक्ष्य को ध्रुव तारे की तरह बनाए रखना मानवता की साझा जिम्मेदारी है। यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा कि देशों को पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पाने के लिए तीन मौके मिले, मगर वे हर बार पीछे रह गए। देशों की योजनाओं से थोड़ी प्रगति हुई है, लेकिन अब भी रफ्तार बेहद धीमी है।

अब भी उम्मीद बाकी
यूएन रिपोर्ट बताती है कि पिछले दशक में तापमान वृद्धि का अनुमान 3.5 से घटकर 2.5 डिग्री सेल्सियस तक आए हैं जो सौर और पवन ऊर्जा के विस्तार का परिणाम है। जी-20 देश वैश्विक उत्सर्जन के 77% के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 7 देशों ने 2035 के लक्ष्य तय किए हैं। 2024 में इनका उत्सर्जन भी 0.7 प्रतिशत बढ़ा, जो दर्शाता है कि सबसे बड़े प्रदूषक देश अब भी धीमी चाल में हैं।

अब निर्णय का वक्त
अगर मौजूदा रफ्तार जारी रही, तो जलवायु आपदाएं रोजमर्रा की वास्तविकता बन जाएगी। हमारे आज के फैसले ही तय करेंगे कि मानवता का भविष्य रहने योग्य रहेगा या नहीं। संयुक्त राष्ट्र ने यह स्पष्ट किया है वक्त बहुत कम है, लेकिन मौका अभी भी है।

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