संकष्टी चतुर्थी पर इसलिए पूजे जाते हैं मंगलमूर्ति गणेश

संकष्टी चतुर्थी के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं इनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित कथा गणेश जी पर ही केंद्रित है। कहते हैं एक बार देवता अपने कष्ट निवारण के लिए भगवान शंकर के पास गए। उस समय भगवान शिव के पास उनके ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय और गणेश भी बैठे हुए थे।

मंगलमूर्ति गणेश

 शिवजी ने दोनों बालकों से पूछा- ‘तुम में से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करेगा?’तब कार्तिकेय ने स्वयं को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य तथा सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया। यह बात सुनकर शिवजी ने गणेश की इच्छा जाननी चाही। तब गणेशजी ने विनम्र भाव से कहा- ‘पिताजी! आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं।’यह सुनकर हंसते हुए शिव ने दोनों को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी- ‘जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा।’ कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए। गणेशजी ने सोचा कि चूहे के बल पर तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना अत्यंत कठिन है इसलिए उन्होंने एक युक्ति सोची। गणेश जी 7 बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए। रास्ते में कार्तिकेय को पूरे पृथ्वी मण्डल में उनके आगे चूहे के पैरों चिह्न दिखाई दिए। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई।
कार्तिकेय जी गणेश पर नाराज हो गए और स्वयं को पूरे भूमण्डल का एकमात्र पर्यटक बताया। इस पर गणेश ने शिव से कहा-‘माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित हैं इसलिए मैंने आपकी 7 बार परिक्रमा की हैं।’ गणेश की बात सुनकर समस्त देवताओं तथा कार्तिकेय ने सिर झुका लिया। तब शंकरजी ने उन्मुक्त कण्ठ से गणेश की प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया- ‘त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी।’ तब गणेशजी ने पिता की आज्ञानुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया।
 
जो स्त्री-पुरुष इस संकष्टी चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश जी का पूजन तथा चंद्र अर्ध्यदान देगा। उसका त्रिविधि ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) दूर होगा और ऐश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर देवगण हर्षातिरेक में प्रणाम कर अंतर्धान हो गए।
 

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